Wednesday, December 31, 2008

विश्वास अपना

न धरती है न अब आकाश अपना;
हमारे संग है विश्वास अपना।

गड़ाया पीठ में चाकू उसीने,
समझते थे जिसे हम ख़ास अपना।

उमर के प्रष्ट कुछ भीगे हुए हैं,
लिखा है दर्द ने इतिहास अपना।

न दीवारें न दरवाजे न खिड़की,
खुला फुटपाथ है आवास अपना।

सहमती कांच की खिड़की हमेशा,
बना घर पत्थरों के पास अपना।

कहाँ तक रूढियों को और ढोऐं,
नजरिया हो गया बिंदास अपना।

रहे बारात 'भारद्वाज' चौकस,
ठगों के बीच है जनवास अपना।

चंद्रभान भारद्वाज

Sunday, December 21, 2008

रोका

कहीं तो द्वार ने रोका कहीं दीवार ने रोका;
सचाई को गवाही से कहीं तलवार ने रोका।

उजागर हो गई होतीं वो करतूतें सभी काली,
ख़बर को आम होने से मगर अखबार ने रोका।

चली थी झोपड़ी का नाम लेकर भोर होते ही,
किरण को पर अंधेरे के सिपहसालार ने रोका।

उठाकर रोशनी को जो चले बारात के आगे,
उन्हें जनवास के बाहर बने सिंह-द्वार ने रोका।

समय की मार खाई है मगर आंसू बहाने से,
हमें ख़ुद संस्कारों में छिपे खुद्दार ने रोका।

यहाँ पर फन उठाये झाड़ियों में नाग बैठे हैं,
कदम जिस ओर भी रखते उन्हें फुंफकार ने रोका।

खुले आकाश में जब पंख पहली बार खोले तो,
परिंदे की उड़ानों को यहाँ चिडिहार ने रोका।

समय की खाइयों को पाटने जो पुल बनाना था,
कभी इस पार ने रोका कभी उस पार ने रोका।

सभाओं ने कहीं रोका कहीं रोका जुलूसों ने,हमें छल-छद्म की हर ओर जयजयकार ने रोका।

चंद्रभान भारद्वाज

Wednesday, December 17, 2008

बता अब क्या करें

ज़िन्दगी बचकर किधर आए बता अब क्या करें;
हर तरफ़ तू ही नज़र आए बता अब क्या करें।

भोर में घर से उडाये जो पखेरू याद के,
फ़िर मुडेरों पर उतर आए बता अब क्या करें।

ज़िन्दगी में यों कहीं कोई कमी लगती नहीं
चैन बिन तेरे न पर आए बता अब क्या करें।

फेंक दी थीं दूर यादों की टहनियां काटकर,
फ़िर नए अंकुर उभर आए बता अब क्या करें।

दौड़ जाती है नसों में एक बिजली की लहर,जब कभी तेरी ख़बर आए बता अब क्या करें।

हर समय लगता स्वयं को भूल आए हैं कहीं,
जब कभी घर लौट कर आए बता अब क्या करें।

तू कभी बनकर कहानी तू कभी बनकर ग़ज़ल,बीच पृष्ठों के उतर आए बता अब क्या करें।


चंद्रभान भारद्वाज

Saturday, December 13, 2008

बनकर.

उतरते देवता इक मूर्ति इंसानी बनकर
कभी अम्मा कभी दादी कभी नानी बनकर।

दिखाते घुप अंधेरे में उजाले की किरणें,
नमाजें प्रार्थना अरदास गुरबानी बनकर।

हंसाते जब कहीं रोता हुआ बालक देखा,
खिलौना खांड का या खील गुडधानी बनकर।

नए अंकुर बचाते धूप से बनकर छाया,
जड़ों को सींचते उनकी हवा पानी बनकर।

बिवाई झोपडी के पांव की वह क्या जाने,
रही जो राजमहलों में महारानी बनकर।

समझ पाते कहाँ से प्यार के ढाई आखर,
किताबें ज़िन्दगी की बस पढीं ग्यानी बनकर।

हवाएं रुख बदलती थीं इशारे पर जिनके,
पड़े हैं आज 'भारद्वाज' बेमानी बनकर।

चंद्रभान भारद्वाज

Wednesday, December 3, 2008

तेरे बिना

अब खुशी कोई नहीं लगती खुशी तेरे बिना;
ज़िन्दगी लगती नहीं अब ज़िन्दगी तेरे बिना।

रात में भी अब जलाते हम नहीं घर में दिया,
आँख में चुभने लगी है रोशनी तेरे बिना।

बात करते हैं अगर हम और आईना कभी,
आँख पर अक्सर उभर आती नमी तेरे बिना।

चाहते हम क्या हमें भी ख़ुद नहीं मालूम कुछ,
हर समय मन में कसकती फांस सी तेरे बिना।

सेहरा बाँधा समय ने कामयाबी का मगर,
चेहरे पर अक्श उभरे मातमी तेरे बिना।

पूर्ण है आकाश मेरा पूर्ण है मेरी धरा,
पर क्षितिज पर कुछ न कुछ लगती कमी तेरे बिना।

हम भले अब और अपना यह अकेलापन भला,
क्या किसी से दुश्मनी क्या दोस्ती तेरे बिना।

चंद्रभान भारद्वाज।
(अरकान- २१२२ २१२२ २१२२ २१२)

Monday, December 1, 2008

लिए आई

हवा जब भी सुहानी शाम का आलम लिए आई;
पुरानी याद कोई दर्द का सरगम लिए आई।

हमारे द्वार पर हरदम खुशी देती रही दस्तक,
मगर वह साथ में कोई न कोई गम लिए आई।

लगाई पौध तो अक्सर सुखाया धूप ने उसको,
फसल आई तो वह हिमपात का मौसम लिए आई।

उजाले रह गए हैं सिर्फ़ बहसों का विषय बनकर,
कुहासे से घिरी हरइक किरण बस तम लिए आई।

हमारे वक्त का बचपन सदा खेला घरोंदों से,
नई पीढी मगर हाथों में अपने बम लिए आई।

हमारी ज़िन्दगी जब हो गई आदी अमावस की,
चिढाने रात अक्सर चाँद या पूनम लिए आई।

नियामत बांटने आई थी 'भारद्वाज' जब किस्मत,
खुशी के बर्क़ में लिपटा हुआ मातम लिए आई।

चंद्रभान भारद्वाज

Tuesday, November 18, 2008

कभी आना.

अँधेरी रात में द्युतिमान बनकर भी कभी आना;
हमारे स्वप्न में मेहमान बनकर भी कभी आना।

पलक पर आंसुओं की बूँद बनकर तो बहुत आए,
अधर पर इक मधुर मुस्कान बनकर भी कभी आना।

न कुछ शिकवा शिकायत हो न कुछ लानत मलामत हो,
महज़ मनुहार का इक पान बनकर भी कभी आना।

अभी हर ओर रिश्तों में घुला है सिर्फ़ कडुआपन,
दिवाली ईद के पकवान बनकर भी कभी आना।

तुम्हारे पाँव की आहट तलक पहचानते हैं हम,
हमारे द्वार पर अनजान बनकर भी कभी आना।

दुखों के गीत गा गा कर हँसी का अर्थ ही भूले,
सुरीली बांसुरी की तान बनकर भी कभी आना।

तुम्हारा नाम 'भारद्वाज' शामिल देवताओं में,
हमारे बीच इक इंसान बनकर भी कभी आना।


चंद्रभान भारद्वाज

Monday, November 17, 2008

रिश्ते भुनाना जानता है.

उसे सारा ज़माना जानता है,
कि वह रिश्ते भुनाना जानता है।

बिछाकर जाल दाने डालता फ़िर,
बड़ी चिडिया फंसाना जानता है।

रखेगा हाथ बस दुखती रगों पर,
निगाहों में गिराना जानता है।

कहाँ से फेंकना पाशे घुमाकर,
कहाँ गोटी बिठाना जानता है।

झुकाकर पीठ कन्धा आदमी के,
उसे सीढ़ी बनाना जानता है।

हुए सब कारनामे जब उजागर,
महज़ गरदन झुकाना जानता है।

वो 'भारद्वाज' लम्बी हांकता है,
हवा में घर बनाना जानता है।

चंद्रभान भारद्वाज

Saturday, November 15, 2008

एक आहट आपकी

एक आहट आपकी

धड़कनें दिल की बढाती एक आहट आपकी;
ज़िन्दगी को जगमगाती है सजावट आपकी।


सुर जगाती घुंघरुओं के और थिरकन पांव की,

घोलती दालान में रस गुनगुनाहट आपकी।

कह रही है आज एलोरा अजंता की कथा ,
शिल्प का अद्भुत नमूना है बनावट आपकी।


डूब जाता मन निराशा के तिमिर में जब कभी,
आस की इक लौ जगाती चुलबुलाहट आपकी।

हाल इक टूटे हुए दिल का सुनाने के लिए,
जोहता है एक युग से बाट पनघट आपकी।


मंदिरों के गर्भगृह में घंटियाँ सी बज उठें,

गूंजती माहौल में जब खिलखिलाहट आपकी।

देख कर नज़रें ज़माने की ज़रा निकला करो,
चैन 'भारद्वाज' हरती मुस्कराहट आपकी।


चंद्रभान भारद्वाज

Wednesday, November 12, 2008

अच्छी लगी

अच्छी लगी

हर सुबह अच्छी लगी हर शाम भी अच्छी लगी;
आप से परिचय हुआ तो ज़िन्दगी अच्छी लगी।

संग पाकर आपका लगने लगा मौसम भला,
चाँदनी तो चाँदनी अब धूप भी अच्छी लगी।

आप आकार बस गए जबसे हमारे गाँव में,
हर मोहल्ला हर तिराहा हर गली अच्छी लगी।

एक अरसे बाद रक्खा था जलाकर इक दिया,
आप आए तो दिए की रोशनी अच्छी लगी।

रूप है पर रूप का अभिमान किंचित भी नही
सच कहें तो आपकी यह सादगी अच्छी लगी।

आँख काज़ल भाल बिंदी हाथ मेहदी हो न हो।
आपकी सूरत बिना श्रंगार भी अच्छी लगी।

मंच पर पढ़ते समय जब दाद पाई आपकी,
यार 'भारद्वाज' अपनी शायरी अच्छी लगी।

चंद्रभान भारद्वाज.

Saturday, November 8, 2008

नाज़ है तो है

नाज़ है तो है;

हमारे प्यार पर हमको अगर कुछ नाज़ है तो है;
हमारी भी निगाहों में कहीं मुमताज़ है तो है।

दिया बनकर जले दिन-रात उसकी मूर्ति के आगे,
ये अपने सूफियाना प्यार का अंदाज़ है तो है।

उमर इक खूबसूरत मोड़ पर दिल छोड़ आयी थी,
धड़कनों में उसी की गूंजती आवाज़ है तो है।

हमारा प्यार उठती हाट का सौदा नहीं कोई,
बंधे अनुबंध में दुनिया अगर नाराज़ है तो है।

खुली है ज़िन्दगी अपनी कहीं परदा नहीं कोई,
अँगूठी में जड़ा उसका दिया पुखराज है तो है।

हमारे प्यार का आधार बालू का घरोंदा था,
हमारी आँख में वह आज तक भी ताज है तो है।

अभी तक पढ़ रहे हैं बस रदीफों काफिओं को हम ,
ग़ज़ल में पर हमारा नाम 'भारद्वाज' है तो है।

चंद्रभान भारद्वाज

Sunday, October 5, 2008

दांव पर हैं.

दांव पर हैं

चेतनाएं दांव पर हैं;
भावनाएं दांव पर हैं

पंगु है साहित्य जग का,
सर्जनाएं दांव पर हैं

मौन मन्दिर और मस्जिद,
प्रार्थनाएं दांव पर हैं

वक्ष पत्थर के हुए सब,
याचनाएं दांव पर हैं

जड़ हुईं संवेदनाएं,
वेदनाएं दांव पर हैं

आँकडों में फंस गईं सब,
योजनायें दांव पर हैं

ध्यान 'भारद्वाज' कलुषित,
साधनाएं दांव पर हैं

चंद्रभान भारद्वाज.






ख़ुद दिशाएं खोजिए

ख़ुद दिशाएं खोजिए

जिंदगी में बस विजय की लालसाएं खोजिये;
हार में भी जीत की संभावनाएं खोजिए

भावनाओं के दिए में तेल शुचिता का भरें;
चेतना की लौ लगन की वर्तिकाएँ खोजिये

आसरा कोई उधारी के उजालों का नहीं;
ख़ुद बनो दीपक स्वयं के ख़ुद दिशाएं खोजिये

अब अँधेरी रात बस दो चार पल की बात है;
खोलिए खिड़की सुबह की लालिमायें खोजिये

चन्द्रभान भारद्वाज

Saturday, October 4, 2008

बोलता है

जिधर बोलता

समय का सितारा जिधर बोलता है;
उसी ओर सारा शहर बोलता है

समझने लगा जो समय की नजाकत,
शहर की हवा देख कर बोलता है

गवाही वहाँ कत्ल की कौन देगा,
जहाँ चाकुओं का असर बोलता है

किया नाम उसके गगन आज सारा,
परिंदे के पर काटकर बोलता है

वो जिन्दा कभी बोलता ही नहीं था,
मरा तो कफ़न फाड़  कर बोलता है

न बचपन ही जाना न जानी जवानी,
गुजरती उमर का सफर बोलता है

लगा हर कथन सच 'भरद्वाज उसका,
निरा झूठ भी इस कदर बोलता है







Friday, October 3, 2008

किसका है

किसका है

सजा किसको है किया किसका है;
लकीरों में जो लिखा किसका है

जड़ें थीं मेरी तना था उसका ,
फलों पर फिर हक़ बता किसका है

ग़ज़ल 'ग़ालिब' की गला 'बेगम' का,
सभा में बांधा समां किसका है

नज़र में यह थी ह्रदय में वह थी,
तपन में साया सदा किसका है

धरा है अपनी गगन है उसका,
छितिज अब सारा भला किसका है

लिफाफे में ख़त रखा है कोई,
लिखा किसको है पता किसका है


नया स्वेटर जो पहन रक्खा है,
बता ' भारद्वाज' बुना किसका है


चंद्रभान भारद्वाज