बबूलों के वनों में गुलमोहर कोई नहीं दिखता
डगर में छाँह दे ऐसा शजर कोई नहीं दिखता
भटकती ही रही है ज़िन्दगी इस दर से उस दर तक
जिसे चाहत रही अपनी वो दर कोई नहीं दिखता
चले थे सोच कर शायद बनेगा कारवाँ आगे
खड़े हैं बस अकेले हम बशर कोई नहीं दिखता
रहा आवाज़ का धोखा कि धोखा है निगाहों का
जिधर आवाज़ आती है उधर कोई नहीं दिखता
दिया बनकर जली है उम्र सारी इक प्रतीक्षा में
चुकी बाती बुझा दीया मगर कोई नहीं दिखता
कहीं थे राह में रोड़े कहीं थी पाँव में बेडी
मगर अपने इरादों पर असर कोई नहीं दिखता
यहाँ कुछ लोग 'भारद्वाज' लिखने में लगे गज़लें
गज़लगोई का पर उनमें हुनर कोई नहीं दिखता
चंद्रभान भारद्वाज
डगर में छाँह दे ऐसा शजर कोई नहीं दिखता
भटकती ही रही है ज़िन्दगी इस दर से उस दर तक
जिसे चाहत रही अपनी वो दर कोई नहीं दिखता
चले थे सोच कर शायद बनेगा कारवाँ आगे
खड़े हैं बस अकेले हम बशर कोई नहीं दिखता
रहा आवाज़ का धोखा कि धोखा है निगाहों का
जिधर आवाज़ आती है उधर कोई नहीं दिखता
दिया बनकर जली है उम्र सारी इक प्रतीक्षा में
चुकी बाती बुझा दीया मगर कोई नहीं दिखता
कहीं थे राह में रोड़े कहीं थी पाँव में बेडी
मगर अपने इरादों पर असर कोई नहीं दिखता
यहाँ कुछ लोग 'भारद्वाज' लिखने में लगे गज़लें
गज़लगोई का पर उनमें हुनर कोई नहीं दिखता
चंद्रभान भारद्वाज