Sunday, June 20, 2010

तो क्या करता

मैं सच को इस तरह साबित नहीं करता तो क्या  करता
कदम  अपने   अँगारों   पर  नहीं   धरता  तो क्या करता  

लगा दे  दाँव  पर  जब  प्यार  अपनी  मान  मर्यादा  
निछावर प्राण फिर उस पर नहीं करता तो क्या करता

सितम   जीने   नहीं   देता  रहम  मरने   नहीं  देता
अगर इंसान जीते जी नहीं मरता तो क्या करता 

न तो जड़ ने रखा मतलब न रक्खा डाल ने रिश्ता 
बता सूखा हुआ पत्ता नहीं झरता तो क्या करता 

कोई रिश्ता अगर कमजोर नस बनकर उभर आए
तो उस पर उँगली रखने से नहीं डरता तो क्या करता 

रहीं कमजोरियाँ उसकी मगर सिर पर   मढ़ीं मेरे
मैं उसका खामियाजा गर नहीं भरता तो क्या करता

प्रणय में दर्द जब आनंद का अहसास देता हो
तो 'भारद्वाज' पीड़ा को नहीं वरता तो क्या करता

चंद्रभान भारद्वाज

Friday, June 11, 2010

बलुआ धरती पानी सी लगती

मृग तृष्णा में  बलुआ धरती  पानी सी लगती
छलना अक्सर सच की एक कहानी सी लगती

कोख किराये पर मिलती है अब बाजारों में
मूल्यों की हर बात यहाँ बेमानी सी लगती 

एक छलाँग लगाकर कल आकाश छुआ हमने 
पर ऐसी हर कोशिश  अब  नादानी सी लगती 

शंकाओं  ने  बोये  ऐसे   बीज  विचारों   में 
सत्य कहानी लेकिन गलत बयानी सी लगती 

कदम कदम पर जाल छलावों और कुचक्रों के 
मीठे बोलों के पीछे शैतानी  सी लगती 

प्रश्न खड़े हैं कपड़ा रोटी और मकानों के 
उत्तर कुटिल समय की आनाकानी सी लगती 

भाषा  भेष  और  भूषा  में  ऐसी   बौराई
हिन्दुस्तानी पीढ़ी इंग्लिस्तानी सी लगती 

पहले देखा और न पहले परिचय था कोई 
लेकिन वह सूरत जानी पहचानी सी लगती 

जब भी   'भारद्वाज' करे दुःख दर्दों की बातें 
जाने क्यों वह अपनी रामकहानी सी लगती 

चंद्रभान भारद्वाज