Sunday, October 9, 2016

              सच्ची निशानी और है


हर निशानी झूठ है सच्ची निशानी और है     कह  कह  रही है कुछ जबाँ लेकिन कहानी और है
एक सागर सिर्फ नदियों के मिलन से ही बना
पर नदी का और है सागर का पानी और है
वेश भूषा देख कर भ्रम में न पड़ जाना कहीं
प्रेम में डूबी हुई मीरा दिवानी और है
बात कागज पर लिखी भी ध्यान से पढना जरा
शब्द तो कुछ और लिक्खे किंतु मानी और है
बन गई है हर कदम पर ज़िंदगी उलझन भरी
शर्त जीने की अलग थी पर निभानी और है
देह की हर इक छुअन पहचानतीं हैं लड़कियाँ
गुदगुदाना और लेकिन छेड़खानी और है
आपने तो व्यर्थ कर दी ऐश में आराम में
होम कर दी उन शहीदों की जवानी और है
वक़्त ने कितनी बदल डाली है सूरत आपकी
आज चेहरा और है फोटो पुरानी और है
डूबता दिन रात ‘भारद्वाज’ भीनी गंध में
मन चमन महका रही वह रातरानी और है
चंद्रभान भारद्वाज
मो. 09826025016
आपके सुलगे सवालों का कोई हल हो न हो 
वक़्त का है क्या भरोसा आज है कल हो न हो 

आज अमृत से नहीं, होते अमर विष पान से 
नाम शीशी पर तो है अंदर हलाहल हो न हो 

तन के समझौते अलग हैं मन के समझौते अलग 
माँग में सिंदूर है आँखों में काजल हो न हो 

आजकल इतना विषमताओं भरा है हर कदम 
इस कदम पर है मगर उस पर धरातल हो न हो 

खाद पानी से निरंतर सींचना पड़तीं जड़ें 
पर भरे मौसम में डालों पर कोई फल हो न हो 

घिर रही आश्वासनों की हर तरफ काली घटा 
प्यास धरती की बुझाने उसमें पर जल हो न हो 

मन के आँगन में किसी का पैठ पाना है कठिन 
अपने दरवाजे पे 'भारद्वाज' साँकल हो न हो