Friday, January 30, 2015

             अहसान को भी भूल जाते हैं 

अहम में आदमी अहसान को भी भूल जाते हैं 
मिले जब लक्ष्मी भगवान को भी भूल जाते हैं 

घिरे रहते हैं जो चेहरे सदा गहरे तनावों से 
हँसी तो छोड़िये मुस्कान को भी भूल जाते हैं 

कराना पड़ता है अपने हुनर का रोज विज्ञापन 
नहीं तो आपके अवदान को भी भूल जाते हैं 

दिया भी कौन रखता है शहीदों की मजारों पर 
यहाँ अब लोग देवस्थान को भी भूल जाते हैं 

उजाड़ी जिसने कल बस्ती किये थे घर से बेघर सब 
समय निकला तो उस तूफ़ान को भी भूल जाते हैं 

समझ पाएंगे कैसे अर्थ मन की भावनाओं का 
जो अपनी देहरी दालान को भी भूल जाते हैं 

अँधेरा शक का गहराता है जब विश्वास के घर में 
तो मन के खिड़की रोशनदान को भी भूल जाते हैं 

नशा अभिमान का जिनके सिरों पर बोलता चढ़कर 
वो अपने मान को सम्मान को भी भूल जाते हैं 

उत्तर आती है मन की वादियों में जब परी कोई 
तो 'भारद्वाज' ऋषि फिर ध्यान को भी भूल जाते हैं 

चंद्रभान  भारद्वाज 


Monday, January 19, 2015

                     चलना छोड़ देंगे क्या              

बिछे हों राह में काँटे तो चलना छोड़ देंगे क्या 
किसी के डर से हम घर से निकलना छोड़ देंगे क्या 

भले बरसात हो आँधी  हो या तूफ़ान हो कोई 
उगे जो क्यारियों में फूल खिलना छोड़ देंगे क्या 

वे अपने मन के राजा हैं उन्हें हक़ है मचलने का 
बड़ों की डांट से बच्चे मचलना छोड़ देंगे क्या 

किसी की चेन झपटी है किसी का पर्स छीना है 
इसी भय से सुबह का हम टहलना छोड़ देंगे क्या 

दिखाई सख़्त देते हैं खड़े जो मोम के पुतले 
मगर वे आग के आगे पिघलना छोड़ देंगे क्या 

उन्हें कितना भी पूजो तुम पिलाओ दूध कितना भी 
मगर वे नाग फन से विष उगलना छोड़ देंगे क्या 

हवाओं की जगह अपनी दियों की है जगह अपनी 
हवा की धमकियों से दीप  जलना छोड़ देंगे क्या 

उन्हें मालूम है पत्थर मिलेंगे फल के आने पर 
वे आमों इमलियों के पेड़ फलना छोड़ देंगे क्या 

नियत निश दिन है 'भारद्वाज'उगना चाँद सूरज का 
 किसी दिन  राहु के भय से निकलना छोड़ देंगे क्या 

चंद्रभान भारद्वाज