Tuesday, December 29, 2009
Wednesday, December 23, 2009
खुद भ्रम में है आईना यहाँ
है ज़हर पर मानकर अमृत उसे पीना यहाँ;
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी की ही तरह जीना यहाँ।
उन हवाओं को वसीयत सौंप दी है वक्त ने,
जिनने खुलकर साँस लेने का भी हक छीना यहाँ।
आँख में रखना नमी कुछ और होठों पर हँसी,
क्या पता पत्थर बने कब फूल सा सीना यहाँ।
हो गया बेहद कठिन पहचानना सच झूठ को,
बीच दोनों के रहा परदा बहुत झीना यहाँ।
पाँव ने कुचला उसे खुद और घायल कर दिया,
राह के कांटों को जिस उँगली ने कल बीना यहाँ।
इस तरफ तो हादसे हैं उस तरफ वीरानियाँ,
कर दिया मुश्किल बहुत इंसान का जीना यहाँ।
एक चेहरे पर लगे हैं अब हज़ारों चेहरे,
देख 'भारद्वाज' खुद भ्रम में है आईना यहाँ।
चंद्रभान भारद्वाज
Friday, December 18, 2009
कोई सपना पलक पर बसा ही नहीं
जाने क्या हो गया है पता ही नहीं;
कोई सपना पलक पर बसा ही नहीं।
नापते हैं वो रिश्तों की गहराइयाँ,
जिनकी आंखों में पानी बचा ही नहीं।
उनको मालूम क्या दर्द क्या चीज है,
जिनके पाँवों में काँटा गड़ा ही नहीं।
टूट जाने का अहसास होता कहाँ,
प्यार की डोर में जब बँधा ही नहीं।
गहरी खाई में जाकर गिरेगा कहीं,
राह में मोड़ पर जो मुड़ा ही नहीं।
राह में मोड़ पर जो मुड़ा ही नहीं।
लोग मीरा कि सुकरात बनने चले ,
स्वाद विष का कभी पर चखा ही नहीं।
बोझ कैसे उठाये भला आदमी,
उसके धड़ पर तो कंधा रहा ही नहीं।
जो पहाड़ों की चोटी चला लाँघने,
खुद की छत पर अभी तक चढ़ा ही नही।
प्यार का अर्थ समझे 'भरद्वाज' क्या,
कृष्ण राधा का दर्शन पढ़ा ही नहीं।
चंद्रभान भारद्वाज
Thursday, December 10, 2009
नया कुछ नहीं
प्यार से और बढ़कर नशा कुछ नहीं;
रोग ऐसा कि जिसकी दवा कुछ नहीं।
जिस दिये को जलाकर रखा प्यार ने,
उसको तूफान आँधी हवा कुछ नहीं।
जान तक अपनी देता खुशी से सदा,
प्यार बदले में खुद माँगता कुछ नहीं।
जिसने तन मन समर्पण किया प्यार को
उसको दुनिया से है वास्ता कुछ नहीं।
आग की इक नदी पार करनी पड़े,
प्यार का दूसरा रास्ता कुछ नहीं।
रेत बनकर बिखरती रहे ज़िन्दगी,
शेष मुट्ठी में रहता बचा कुछ नहीं।
शेष मुट्ठी में रहता बचा कुछ नहीं।
हाल सब आँसुओं से लिखा पत्र में,
पर लिफाफे के ऊपर पता कुछ नही।
देह तो जल गई आत्मा उड़ गई,
राख है और बाकी रहा कुछ नहीं।
प्यार का फल मिला जो 'भरद्वाज' को,
दर्द की पोटली है नया कुछ नहीं।
चंद्रभान भारद्वाज
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