Wednesday, July 2, 2014

      ये कैसा हो गया है 

न जाने हाल दिल का ये कैसा हो गया है 
निगाहों में धुँआ ही धुँआ सा हो गया है 

उठा सिर दंभ का दोस्तों के बीच जब भी 
सड़क पर दोस्ती का तमाशा हो गया है 

गये सब सूख रिश्तों के शाखें फूल पत्ते 
जड़ों से उनका रिश्ता कटा सा हो गया है 

छलों की मकड़ियों ने बिछाये जाल ऐसे 
भला सा आदमी अब छला सा हो गया है 

जुड़ा था एक क्लिक में कभी जो फेस बुक पर 
अचानक ज़िंदगी से जुदा सा हो गया है 

ग्रहण सा लग गया है उमर की चाँदनी को 
गुलाबी गाल पर जब मुँहासा हो गया है 

अहम ने तो किया आदमी को सिर्फ कड़वा 
गरज में पर वही इक बताशा हो गया है 

भरोसा उठ गया है भरोसे से भी अब तो 
सगा ही अब लहू का पियासा हो गया है 

मिला है प्यार में जब भी 'भारद्वाज' धोखा 
खिला सा एक चेहरा बुझा सा हो गया है  

चंद्रभान भारद्वाज