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अच्छी लगी
अच्छी लगी
हर सुबह अच्छी लगी हर शाम भी अच्छी लगी;
आप से परिचय हुआ तो ज़िन्दगी अच्छी लगी।
संग पाकर आपका लगने लगा मौसम भला,
चाँदनी तो चाँदनी अब धूप भी अच्छी लगी।
आप आकार बस गए जबसे हमारे गाँव में,
हर मोहल्ला हर तिराहा हर गली अच्छी लगी।
एक अरसे बाद रक्खा था जलाकर इक दिया,
आप आए तो दिए की रोशनी अच्छी लगी।
रूप है पर रूप का अभिमान किंचित भी नही
सच कहें तो आपकी यह सादगी अच्छी लगी।
आँख काज़ल भाल बिंदी हाथ मेहदी हो न हो।
आपकी सूरत बिना श्रंगार भी अच्छी लगी।
मंच पर पढ़ते समय जब दाद पाई आपकी,
यार 'भारद्वाज' अपनी शायरी अच्छी लगी।
चंद्रभान भारद्वाज.
2 comments:
'आप आये तो दिये की रोशनी अच्छी लगी'
बहुत सुन्दर।
good blog and good work ji
Shyari Is Here Visit Jauru Karo Ji
http://www.discobhangra.com/shayari/sad-shayri/
Etc...........
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