नए तेवर नया अंदाज़ रखना;
कहन सच्ची खरी आवाज़ रखना.
भले ही पंख हों छोटे तुम्हारे,
सदा ऊँची मगर परवाज़ रखना.
कभी भूखा कभी प्यासा रखेगी,
मगर इस ज़िन्दगी पर नाज़ रखना.
दुआएँ उनकी फलती फूलती है,
न पुरखों को नज़र- अंदाज़ रखना.
रहेगी ज़िन्दगी हर वक़्त जिंदा,
कहीं दिल में कोई मुमताज़ रखना.
बिना बोले जो मन की बात समझे,
कहीं ऐसा कोई हमराज रखना.
ग़ज़ल का हो अगर शौक़ीन बेटा,
तो उसका नाम 'भारद्वाज' रखना.
चंद्रभान भारद्वाज
Wednesday, January 13, 2010
Tuesday, January 12, 2010
बैठा हुआ हूँ
नदी को पार कर बैठा हुआ हूँ;
सभी कुछ हार कर बैठा हुआ हूँ.
मिले बिन मान के ऐश्वर्य सारे,
उन्हें इनकार कर बैठा हुआ हूँ.
मना पाया न रूठी ज़िन्दगी को,
बहुत मनुहार कर बैठा हुआ हूँ.
मुझे मझधार में जो छोड़ आया,
उसे मैं तार कर बैठा हुआ हूँ.
बहा कर आ गया हूँ सब नदी में,
जो भी उपकार कर बैठा हुआ हूँ.
उधर सब मन की मर्ज़ी कर रहे हैं,
इधर मन मार कर बैठा हुआ हूँ.
बिना अपराध के भी हर सजा को,
सहज स्वीकार कर बैठा हुआ हूँ.
ज़माना इसलिए नाराज मुझ से,
किसी को प्यार कर बैठा हुआ हूँ.
अँधेरा हो न 'भारद्वाज' हावी,
दिया तैयार कर बैठा हुआ हूँ.
चंद्रभान भारद्वाज
सभी कुछ हार कर बैठा हुआ हूँ.
मिले बिन मान के ऐश्वर्य सारे,
उन्हें इनकार कर बैठा हुआ हूँ.
मना पाया न रूठी ज़िन्दगी को,
बहुत मनुहार कर बैठा हुआ हूँ.
मुझे मझधार में जो छोड़ आया,
उसे मैं तार कर बैठा हुआ हूँ.
बहा कर आ गया हूँ सब नदी में,
जो भी उपकार कर बैठा हुआ हूँ.
उधर सब मन की मर्ज़ी कर रहे हैं,
इधर मन मार कर बैठा हुआ हूँ.
बिना अपराध के भी हर सजा को,
सहज स्वीकार कर बैठा हुआ हूँ.
ज़माना इसलिए नाराज मुझ से,
किसी को प्यार कर बैठा हुआ हूँ.
अँधेरा हो न 'भारद्वाज' हावी,
दिया तैयार कर बैठा हुआ हूँ.
चंद्रभान भारद्वाज
Wednesday, January 6, 2010
कभी लगती हकीक़त सी
कभी तो ख्वाब सा लगता कभी लगती हकीक़त सी;
मिली है ज़िन्दगी इक क़र्ज़ में डूबी वसीयत सी.
उसूलों के लिए जो जान देते थे कभी अपनी,
वे खुद करने लगे हैं अब उसूलों की तिजारत सी.
कभी जिनके इशारों पर हवा का रुख बदलता था ,
हवा करने लगी है अब स्वयं उनसे बगावत सी.
रखा जिसके लिए अपना हरिक सपना यहाँ गिरवी,
दिखी उसकी निगाहों में झलकती अब हिकारत सी.
न उनको भूल ही पाते न चर्चाओं में ला पाते,
रखीं दिल में अभी तक कुछ मधुर यादें अमानत सी.
कभी रिश्तों की सोंधी सी महक उठती थी जिस घर में,
वहाँ फैली हुई है आजकल हर ओर नफ़रत सी.
समझ पाते न 'भारद्वाज' हम उसके इशारों को,
हमारी आत्मा देती हमें हरदम नसीहत सी.
चंद्रभान भारद्वाज
मिली है ज़िन्दगी इक क़र्ज़ में डूबी वसीयत सी.
उसूलों के लिए जो जान देते थे कभी अपनी,
वे खुद करने लगे हैं अब उसूलों की तिजारत सी.
कभी जिनके इशारों पर हवा का रुख बदलता था ,
हवा करने लगी है अब स्वयं उनसे बगावत सी.
रखा जिसके लिए अपना हरिक सपना यहाँ गिरवी,
दिखी उसकी निगाहों में झलकती अब हिकारत सी.
न उनको भूल ही पाते न चर्चाओं में ला पाते,
रखीं दिल में अभी तक कुछ मधुर यादें अमानत सी.
कभी रिश्तों की सोंधी सी महक उठती थी जिस घर में,
वहाँ फैली हुई है आजकल हर ओर नफ़रत सी.
समझ पाते न 'भारद्वाज' हम उसके इशारों को,
हमारी आत्मा देती हमें हरदम नसीहत सी.
चंद्रभान भारद्वाज
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