Tuesday, November 18, 2008

कभी आना.

अँधेरी रात में द्युतिमान बनकर भी कभी आना;
हमारे स्वप्न में मेहमान बनकर भी कभी आना।

पलक पर आंसुओं की बूँद बनकर तो बहुत आए,
अधर पर इक मधुर मुस्कान बनकर भी कभी आना।

न कुछ शिकवा शिकायत हो न कुछ लानत मलामत हो,
महज़ मनुहार का इक पान बनकर भी कभी आना।

अभी हर ओर रिश्तों में घुला है सिर्फ़ कडुआपन,
दिवाली ईद के पकवान बनकर भी कभी आना।

तुम्हारे पाँव की आहट तलक पहचानते हैं हम,
हमारे द्वार पर अनजान बनकर भी कभी आना।

दुखों के गीत गा गा कर हँसी का अर्थ ही भूले,
सुरीली बांसुरी की तान बनकर भी कभी आना।

तुम्हारा नाम 'भारद्वाज' शामिल देवताओं में,
हमारे बीच इक इंसान बनकर भी कभी आना।


चंद्रभान भारद्वाज

Monday, November 17, 2008

रिश्ते भुनाना जानता है.

उसे सारा ज़माना जानता है,
कि वह रिश्ते भुनाना जानता है।

बिछाकर जाल दाने डालता फ़िर,
बड़ी चिडिया फंसाना जानता है।

रखेगा हाथ बस दुखती रगों पर,
निगाहों में गिराना जानता है।

कहाँ से फेंकना पाशे घुमाकर,
कहाँ गोटी बिठाना जानता है।

झुकाकर पीठ कन्धा आदमी के,
उसे सीढ़ी बनाना जानता है।

हुए सब कारनामे जब उजागर,
महज़ गरदन झुकाना जानता है।

वो 'भारद्वाज' लम्बी हांकता है,
हवा में घर बनाना जानता है।

चंद्रभान भारद्वाज

Saturday, November 15, 2008

एक आहट आपकी

एक आहट आपकी

धड़कनें दिल की बढाती एक आहट आपकी;
ज़िन्दगी को जगमगाती है सजावट आपकी।


सुर जगाती घुंघरुओं के और थिरकन पांव की,

घोलती दालान में रस गुनगुनाहट आपकी।

कह रही है आज एलोरा अजंता की कथा ,
शिल्प का अद्भुत नमूना है बनावट आपकी।


डूब जाता मन निराशा के तिमिर में जब कभी,
आस की इक लौ जगाती चुलबुलाहट आपकी।

हाल इक टूटे हुए दिल का सुनाने के लिए,
जोहता है एक युग से बाट पनघट आपकी।


मंदिरों के गर्भगृह में घंटियाँ सी बज उठें,

गूंजती माहौल में जब खिलखिलाहट आपकी।

देख कर नज़रें ज़माने की ज़रा निकला करो,
चैन 'भारद्वाज' हरती मुस्कराहट आपकी।


चंद्रभान भारद्वाज

Wednesday, November 12, 2008

अच्छी लगी

अच्छी लगी

हर सुबह अच्छी लगी हर शाम भी अच्छी लगी;
आप से परिचय हुआ तो ज़िन्दगी अच्छी लगी।

संग पाकर आपका लगने लगा मौसम भला,
चाँदनी तो चाँदनी अब धूप भी अच्छी लगी।

आप आकार बस गए जबसे हमारे गाँव में,
हर मोहल्ला हर तिराहा हर गली अच्छी लगी।

एक अरसे बाद रक्खा था जलाकर इक दिया,
आप आए तो दिए की रोशनी अच्छी लगी।

रूप है पर रूप का अभिमान किंचित भी नही
सच कहें तो आपकी यह सादगी अच्छी लगी।

आँख काज़ल भाल बिंदी हाथ मेहदी हो न हो।
आपकी सूरत बिना श्रंगार भी अच्छी लगी।

मंच पर पढ़ते समय जब दाद पाई आपकी,
यार 'भारद्वाज' अपनी शायरी अच्छी लगी।

चंद्रभान भारद्वाज.

Saturday, November 8, 2008

नाज़ है तो है

नाज़ है तो है;

हमारे प्यार पर हमको अगर कुछ नाज़ है तो है;
हमारी भी निगाहों में कहीं मुमताज़ है तो है।

दिया बनकर जले दिन-रात उसकी मूर्ति के आगे,
ये अपने सूफियाना प्यार का अंदाज़ है तो है।

उमर इक खूबसूरत मोड़ पर दिल छोड़ आयी थी,
धड़कनों में उसी की गूंजती आवाज़ है तो है।

हमारा प्यार उठती हाट का सौदा नहीं कोई,
बंधे अनुबंध में दुनिया अगर नाराज़ है तो है।

खुली है ज़िन्दगी अपनी कहीं परदा नहीं कोई,
अँगूठी में जड़ा उसका दिया पुखराज है तो है।

हमारे प्यार का आधार बालू का घरोंदा था,
हमारी आँख में वह आज तक भी ताज है तो है।

अभी तक पढ़ रहे हैं बस रदीफों काफिओं को हम ,
ग़ज़ल में पर हमारा नाम 'भारद्वाज' है तो है।

चंद्रभान भारद्वाज