Sunday, October 5, 2008
ख़ुद दिशाएं खोजिए
ख़ुद दिशाएं खोजिए
जिंदगी में बस विजय की लालसाएं खोजिये;
हार में भी जीत की संभावनाएं खोजिए
भावनाओं के दिए में तेल शुचिता का भरें;
चेतना की लौ लगन की वर्तिकाएँ खोजिये
आसरा कोई उधारी के उजालों का नहीं;
ख़ुद बनो दीपक स्वयं के ख़ुद दिशाएं खोजिये
अब अँधेरी रात बस दो चार पल की बात है;
खोलिए खिड़की सुबह की लालिमायें खोजिये
चन्द्रभान भारद्वाज
Saturday, October 4, 2008
बोलता है
जिधर बोलता
समय का सितारा जिधर बोलता है;
उसी ओर सारा शहर बोलता है
समझने लगा जो समय की नजाकत,
शहर की हवा देख कर बोलता है
गवाही वहाँ कत्ल की कौन देगा,
जहाँ चाकुओं का असर बोलता है
किया नाम उसके गगन आज सारा,
परिंदे के पर काटकर बोलता है
वो जिन्दा कभी बोलता ही नहीं था,
मरा तो कफ़न फाड़ कर बोलता है
न बचपन ही जाना न जानी जवानी,
गुजरती उमर का सफर बोलता है
लगा हर कथन सच 'भरद्वाज उसका,
निरा झूठ भी इस कदर बोलता है
Friday, October 3, 2008
किसका है
किसका है
सजा किसको है किया किसका है;
लकीरों में जो लिखा किसका है
जड़ें थीं मेरी तना था उसका ,
फलों पर फिर हक़ बता किसका है
ग़ज़ल 'ग़ालिब' की गला 'बेगम' का,
सभा में बांधा समां किसका है
नज़र में यह थी ह्रदय में वह थी,
तपन में साया सदा किसका है
धरा है अपनी गगन है उसका,
छितिज अब सारा भला किसका है
लिफाफे में ख़त रखा है कोई,
लिखा किसको है पता किसका है
नया स्वेटर जो पहन रक्खा है,
बता ' भारद्वाज' बुना किसका है
चंद्रभान भारद्वाज
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