Saturday, April 25, 2009
Sunday, April 12, 2009
ज्योति कैसे जलेगी जलाए बिना
दीप को वर्तिका से मिलाए बिना;
ज्योति कैसे जलेगी जलाए बिना।
स्वप्न आकार लेंगे भला किस तरह,
हौसलों को अगन में गलाए बिना।
ज़िन्दगी में चटक रंग कब भर सके,
सोये अरमान के कुलबुलाए बिना।
एक तारा कभी टूटता ही नहीं,
दूर आकाश में खिलखिलाए बिना।
प्यार का अर्थ आता समझ में नहीं,
आँख में अश्रु के छलछलाए बिना।
तुम इधर मौन हो वह उधर मौन है,
बात कैसे चलेगी चलाए बिना।
लाख परदे गिराकर रखो ओट में,
रूप रहता नहीं झिलमिलाए बिना।
शब्द के विष बुझे बाण जब भी चुभे,
कौन सा दिल बचा तिलमिलाए बिना।
वे बहारें 'भरद्वाज' किस काम की,
जो गईं फूल कोई खिलाए बिना।
चंद्रभान भारद्वाज
Sunday, April 5, 2009
ख़ुद को भला तो बना
चार तिनके जुटा घोंसला तो बना;
ज़िन्दगी का कहीं सिलसिला तो बना।
इक पहल एक रिश्ता बने ना बने,
जान पहचान का मामला तो बना।
कुछ कदम तुम बढ़े कुछ कदम हम बढ़े, ,
कर गुजरने का कुछ हौसला तो बना।
ज़िन्दगी एक ठहरी हुई झील है,
कर तरंगित कहीं बुलबुला तो बना।
सन्न सुनसान में एक आवाज दे,
गूँज से जोश का जलजला तो बना।
फ़िर बनाना कभी ताज सा इक महल,
प्यार में प्राण को बावला तो बना।
यह ज़माना नहीं है भला ना सही,
पर 'भरद्वाज' ख़ुद को भला तो बना।
चंद्रभान भारद्वाज
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