मस्तियों शैतानियों का दौर ही अच्छा लगा
ज़िन्दगी में आप थे तो और ही अच्छा लगा
आज लगते हैं हमें रसहीन छप्पन भोग भी
आप के हाथों का सूखा कौर ही अच्छा लगा
अब ख़ुशी देता नहीं सिर पर मुकुट रतनों जड़ा
आप से पहना खजूरी मौर ही अच्छा लगा
राह में चलते समय पद चिन्ह देखे आपके
तो हमें सुनसान सा वह ठौर ही अच्छा लगा
आप बिन भाती नहीं फलती हुई अमराइयाँ
आप थे तो ठूँठ इक बिन बौर ही अच्छा लगा
जब कभी तनहाइयों में याद आती आपकी
तब पलक पर आँसुओं का दौर ही अच्छा लगा
यार 'भारद्वाज' अब न्यूयार्क पेरिस कुछ नहीं
आप के सँग तो हमें इंदौर ही अच्छा लगा
चंद्रभान भारद्वाज