खूनी कथाएं लिख रहीं तलवार के पीछे
दफना दिया हर राज़ पर अखबार के पीछे
उम्मीद रक्खोगे बता क्या न्याय की उनसे
जो खुद खड़े हैं आज गुनाहगार के पीछे
ऊपर से देखेंगे अगर तो दिख नहीं पाता
अंदर छिपा है स्वार्थ हर उपकार के पीछे
लगता अकेला सा अकेला है नहीं लेकिन
इक दर्द रहता है सदा फनकार के पीछे
रहता हँसाता भीड़ को जो रोज परदे पर
है आँसुओं की बाढ़ उस किरदार के पीछे
लग तो रहा है चैन से बैठा हुआ होगा
पर भग रहा है आदमी कलदार के पीछे
सडकों पे आकर खुद पलट देती है अब तख्ता
पड़ती है जब जनता किसी सरकार के पीछे
तकदीर में अक्सर भलाई के लिखीं चोटें
है पत्थरों का ढेर हर फलदार के पीछे
कोई सदी या सभ्यता कोई हो 'भारद्वाज'
होते रहे हैं हादसे हर प्यार के पीछे
चंद्रभान भारद्वाज