उसे सारा ज़माना जानता है,
कि वह रिश्ते भुनाना जानता है।
बिछाकर जाल दाने डालता फ़िर,
बड़ी चिडिया फंसाना जानता है।
रखेगा हाथ बस दुखती रगों पर,
निगाहों में गिराना जानता है।
कहाँ से फेंकना पाशे घुमाकर,
कहाँ गोटी बिठाना जानता है।
झुकाकर पीठ कन्धा आदमी के,
उसे सीढ़ी बनाना जानता है।
हुए सब कारनामे जब उजागर,
महज़ गरदन झुकाना जानता है।
वो 'भारद्वाज' लम्बी हांकता है,
हवा में घर बनाना जानता है।
हवा में घर बनाना जानता है।
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