Thursday, December 8, 2011

ज़िन्दगी उत्तर भी है

ज़िन्दगी इक प्रश्न भी है ज़िन्दगी उत्तर भी है 
फल कहीं वरदान का शापित कहीं पत्थर भी है 


है गुनाहों और दागों से भरा दामन कहीं 
पर कहीं दरगाह  की इक रेशमी चादर भी है 

लग नहीं पाता किसी सूरत से सीरत का पता 
तह पे तह बाहर भी उसके तह पे तह भीतर भी है 


ज़िन्दगी खुद ही जुआ है खुद लगी है दाँव पर 
खुद शकुनि है खुद ही पासे और खुद चौसर भी है 


फब्तियाँ मक्कारियाँ चालाकियाँ बेशर्मियाँ 
आजकल की ज़िन्दगी बिग बॉस जैसा घर भी है 


करना परिभाषित कठिन है ज़िन्दगी का फलसफा 
बूँद सी छोटी भी है गहरा महासागर भी है 


झाँकती अट्टालिकाओं के झरोखों से कहीं 
पर कहीं फुटपाथ पर बेबस भी है बेघर भी है 


है ज़माने के निठुर हाथों की कठपुतली कभी 
पर कभी सीने पे उसके रेंगता अजगर भी है 


चल रहा है लाद 'भारद्वाज' कंधों पर जिसे 
पुण्य की है पोटली तो पाप का गट्ठर भी है 


चंद्रभान भारद्वाज