Friday, August 12, 2016

     यह रोग क्या लगा है मुझे 

जाने यह रोग क्या लगा है मुझे 
कोई लगती नहीं दवा है मुझे 

हों खुली या कि बंद हों आँखें 
उसका चेहरा ही दीखता है मुझे 

फेर कर मुँह को आज बैठा है 
जिसकी नज़रों का आसरा है मुझे 

मैंने तो ज़िन्दगी खफा दी है 
उसने बस दर्द ही दिया है मुझे 

जिसका विश्वास मेरी पूँजी थी 
शक की नज़रों से देखता है मुझे 

इक लिफाफे में कोरा कागज है 
पत्र में जाने क्या कहा है मुझे 

वक़्त अंधा है रेबड़ी बाँटे 
मेरा हक़ भी कहाँ मिला है मुझे 

उम्र भर साथ तो दिया मैंने 
साथ पर उसने कब दिया है मुझे 

साथ छूटा मगर रखा रिश्ता 
मान रिश्तों का साधना है मुझे 

मेरी नींदों को सिर्फ लौटा  दे 
अब न कुछ और कामना है मुझे 

नाव जर्जर है 'भारद्वाज'मेरी 
अपने अंजाम का पता है मुझे