सफ़र में चलते चलते ऐसा भी इक दौर आता है
गिराता है हमें अपना उठाने और आता है
झपट्टा मार कर सहसा छिनाता वक़्त हाथों से
कभी जब मुँह तलक रोटी का कोई कौर आता है
अचानक आँधियाँ आतीं कि गिरते ओले बेमौसम
उमगती आम की डालों पे जब भी बौर आता है
कदम जिस ओर भी बढ़ते नज़र जिस ओर भी उठती
नज़र चोरों का चौराहा ठगों का ठौर आता है
सुबकती माथे की बिंदी ठिठकते पाँव के बिछुआ
बिरहिनी ज़िन्दगी में पर्व जब गनगौर आता है
उभरता शक निगाहों में पनपती ईर्षा मन में
किसी सिर पर सफलताओं का जब भी मौर आता है
है मीठा स्वाद सौंधी गंध 'भारद्वाज' रिश्तों की
यहीं का बन के रह जाता जो भी इंदौर आता है
चंद्रभान भारद्वाज
Sunday, September 26, 2010
Monday, September 13, 2010
कहीं इस ज़िन्दगी में जश्न की तैयारियाँ भी हैं
कहीं कमजोरियाँ भी हैं कहीं लाचारियाँ भी हैं
मगर इस ज़िन्दगी में जश्न की तैयारियाँ भी हैं
गरज ये है निगाहें इस ज़मीं पर ढूँढती हैं क्या
छिपे शबनम के मोती भी दबीं चिनगारियाँ भी हैं
रखा है उम्र ने हर बोझ अपना टाँग कन्धों पर
बंधीं मजबूरियाँ भी हैं बंधी खुद्दारियाँ भी हैं
लिखे हैं भूख के किस्से अभावों की इबारत भी
मगर मासूम अधरों पर खिली किलकारियाँ भी हैं
उगे इस दिल की धरती पर तो अक्सर प्यार के पौधे
ज़माने के मगर हाथों में पैनी आरियाँ भी हैं
यहाँ पलटे हैं जब जब भी किसी इतिहास के पन्ने
जहाँ कुर्बानियाँ लिक्खीं वहाँ गद्दारियाँ भी हैं
इरादों को अटल रखना शिखर रखना निगाहों में
डगर में वन बबूलों के भी हैं फुलवारियाँ भी हैं
समय का चक्र हरदम घूमता चारों तरफ अपने
अमावस इक तरफ है इक तरफ उजियारियाँ भी हैं
बसी है इक अलग दुनिया ही 'भारद्वाज' इस दिल में
दहकती वादियाँ हैं तो महकती क्यारियाँ भी हैं
चंद्रभान भारद्वाज
मगर इस ज़िन्दगी में जश्न की तैयारियाँ भी हैं
गरज ये है निगाहें इस ज़मीं पर ढूँढती हैं क्या
छिपे शबनम के मोती भी दबीं चिनगारियाँ भी हैं
रखा है उम्र ने हर बोझ अपना टाँग कन्धों पर
बंधीं मजबूरियाँ भी हैं बंधी खुद्दारियाँ भी हैं
लिखे हैं भूख के किस्से अभावों की इबारत भी
मगर मासूम अधरों पर खिली किलकारियाँ भी हैं
उगे इस दिल की धरती पर तो अक्सर प्यार के पौधे
ज़माने के मगर हाथों में पैनी आरियाँ भी हैं
यहाँ पलटे हैं जब जब भी किसी इतिहास के पन्ने
जहाँ कुर्बानियाँ लिक्खीं वहाँ गद्दारियाँ भी हैं
इरादों को अटल रखना शिखर रखना निगाहों में
डगर में वन बबूलों के भी हैं फुलवारियाँ भी हैं
समय का चक्र हरदम घूमता चारों तरफ अपने
अमावस इक तरफ है इक तरफ उजियारियाँ भी हैं
बसी है इक अलग दुनिया ही 'भारद्वाज' इस दिल में
दहकती वादियाँ हैं तो महकती क्यारियाँ भी हैं
चंद्रभान भारद्वाज
Sunday, September 5, 2010
कभी जब ज़िन्दगी की राह में तनहाइयाँ आतीं
महक सौंधी सी लेकर जब कभी पुरवाइयाँ आतीं
उभर यादों में सहसा गाँव की अमराइयाँ आतीं
खयालों में अचानक नाम कोई कौंध जाता है
कभी जब हिचकियाँ आतीं कि जब अंगडाइयां आतीं
न तो आहट कहीं होती न दस्तक ही कहीं देतीं
पलक के द्वार दिल के दर्द की जब झाइयाँ आतीं
कभी तो दिल धड़कता है कभी होतीं पलक गीली
कुँवारे द्वार पर जब गूँजतीं शहनाइयाँ आतीं
शहर से गाँव आने पर कुशलता पूछने अक्सर
मोहल्ले भर की चाची ताइयाँ भौजाइयाँ आतीं
अँधेरा देखते ही संग अपना छोड़ जाती हैं
उजाले में सदा जो साथ में परछाइयाँ आतीं
लगा लें लोग कितने ही मुखौटे एक चेहरे पर
समय के सामने खुद एक दिन सच्चाइयाँ आतीं
सफलता का कोई भी रास्ता सीधा नहीं होता
कहीं गहरे कुएँ खाई कहीं ऊँचाइयाँ आतीं
दिशा अपनी बदल लेता है 'भारद्वाज' हर रिश्ता
कभी जब ज़िन्दगी की राह में तनहाइयाँ आतीं
चंद्रभान भारद्वाज
उभर यादों में सहसा गाँव की अमराइयाँ आतीं
खयालों में अचानक नाम कोई कौंध जाता है
कभी जब हिचकियाँ आतीं कि जब अंगडाइयां आतीं
न तो आहट कहीं होती न दस्तक ही कहीं देतीं
पलक के द्वार दिल के दर्द की जब झाइयाँ आतीं
कभी तो दिल धड़कता है कभी होतीं पलक गीली
कुँवारे द्वार पर जब गूँजतीं शहनाइयाँ आतीं
शहर से गाँव आने पर कुशलता पूछने अक्सर
मोहल्ले भर की चाची ताइयाँ भौजाइयाँ आतीं
अँधेरा देखते ही संग अपना छोड़ जाती हैं
उजाले में सदा जो साथ में परछाइयाँ आतीं
लगा लें लोग कितने ही मुखौटे एक चेहरे पर
समय के सामने खुद एक दिन सच्चाइयाँ आतीं
सफलता का कोई भी रास्ता सीधा नहीं होता
कहीं गहरे कुएँ खाई कहीं ऊँचाइयाँ आतीं
दिशा अपनी बदल लेता है 'भारद्वाज' हर रिश्ता
कभी जब ज़िन्दगी की राह में तनहाइयाँ आतीं
चंद्रभान भारद्वाज
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