Tuesday, November 17, 2015

                       हो गया कैसे 

इक दोस्त भी दुश्मन अचानक हो गया कैसे 
विश्वास पर भी खून का शक हो गया कैसे 

लिक्खा हुआ था नाम सब का ही वसीयत में 
उस पर भला बस आपका हक़ हो गया कैसे 

कल तक भरा था सिर्फ कालिख और दागों  से 
पर आज वह दामन झकाझक हो गया कैसे 

चलता रहा था शांति  का पैगाम लेकर जो 
वह कारवां सहसा अराजक हो गया कैसे 

माता पिता को छोड़ आया है अनाथालय 
वो देव पूजा में विनायक हो गया कैसे 

अब बात विनती से नहीं बन्दूक से बनती
इहि  काल  मूल्यों का विनाशक हो गया कैसे 

यह विश्व ही सारा रहा परिवार कल अपना 
संकीर्ण अब मानस यकायक हो गया कैसे 

पहने हुए जो जुर्म की जंजीर पाँवों  में 
वह शख्स परिषद का विधायक हो गया कैसे 

दायित्व सौंपा था सुरक्षा के लिए जिसको 
वह हाथ 'भारद्वाज' घातक हो गया कैसे 

चंद्रभान भारद्वाज