Monday, November 21, 2011

बराबर मिलेगा

न ज्यादा मिलेगा न कमतर मिलेगा
लिखा उसने जितना बराबर मिलेगा

जड़ें सींचना तो पड़ेंगी निरंतर

मगर डाल पर फल समय पर मिलेगा

जपोगे नहीं जब तलक उसको मन से

न बाहर मिलेगा न भीतर मिलेगा

पड़ेगी नज़र उसकी जिस पर भी सीधी

पड़ा था जो तळ में शिखर पर मिलेगा

न यादों से उसको सजाओगे हरदम

तो घर प्यार का एक खँडहर मिलेगा

मिला जिस शजर पर बहारों का मौसम

उसी पर ही इक रोज पतझर मिलेगा

बिना धूल खाए पसीना बहाए

न धरती मिलेगी न अम्बर मिलेगा

है ओढ़ी फकीरी तो परवाह कैसी

कहाँ रोटी कपड़ा कहाँ घर मिलेगा

हुई दृष्टि गहरी 'भरद्वाज' जिसकी

उसे बूँद में ही समुन्दर मिलेगा

चंद्रभान भारद्वाज

Sunday, November 13, 2011

मेरा लिखा रह जायगा

अनसुना रह जायगा कुछ अनकहा रह जायगा
मैं  रहूँ  या  ना  रहूँ  मेरा  लिखा  रह  जायगा

वक़्त के आगे नहीं रखता है जो अपने कदम
वक़्त के मलबे के नीचे वह दबा रह जायगा

रुक गया जिस दिन भी अपनी जिंदगानी का बहाव
खार कीचड़ काई या पानी सडा रह जायगा

शब्द में बाँधा नहीं यदि आज के अहसास को
सभ्यता की भीड़ में वह लापता रह जायगा

क्या पता नासूर सा बनकर उभर आएगा कब
बात का काँटा अगर दिल में चुभा रह जायगा

लोग जो जलती मशालों को बुझाने में लगे
एक दिन उनका भी चेहरा बदनुमा रह जायगा

लूटने में लग रहे जब लोग लाशों का कफ़न
कौन नंगों और भूखों के सिवा रह जायगा

डालियों  पर  गिद्ध  बैठे  हैं  जड़ों  में  दीमकें 
देखना यह पेड़ इक दिन खोखला रह जायगा

बागड़ें खुद खेत को जब रात दिन चट कर रहीं
फिर वहाँ बंजर धरा के और क्या रह जायगा

राज रथ चल कर सड़क से जाएगा संसद तलक
आदमी पहियों के नीचे ही पिसा रह जायगा

क्या करोगे अर्थ 'भारद्वाज' इतना जोड़कर
साथ अरथी जायगी बाकी धरा रह जायगा

चंद्रभान भारद्वाज







Wednesday, November 2, 2011

और क्या चाहिए

राह है वाह  है और क्या चाहिए 
प्यार हमराह है और क्या चाहिए 

दूर है पर किसी दिल में तेरे लिए 
प्यार की चाह है और क्या चाहिए 

प्यार विश्वास है आस है प्यास है 
दर्द है आह है और क्या चाहिए 

आँख में तो प्रतीक्षा रही प्यार की 
दिल में परवाह है और क्या चाहिए 

गोपियाँ नाँचतीं गायें चरतीं जहाँ 
वह चरागाह है और क्या चाहिए 

प्यार मंदिर है मस्जिद है गिरजा तो है 
एक दरगाह है और क्या चाहिए

प्यार ही राम है प्यार ईसा मसीह 
प्यार अल्लाह है और क्या चाहिए 

प्यार उन्माद है प्यार आल्हाद है 
प्यार उत्साह है और क्या चाहिए 

जिसका अबतक कहीं तल मिला ही नहीं 
प्यार बेथाह है और क्या चाहिए 

प्यार झुकता नहीं प्यार डरता नहीं 
खुद शहंशाह है और क्या चाहिए 

नाव जर्जर हवा तेज मझधार हो 
प्यार मल्लाह है और क्या चाहिए 

प्यार पिचकारियाँ मस्तियाँ शोखियाँ 
फागुनी माह है और क्या चाहिए 

प्यार ढलता ग़ज़ल में 'भरद्वाज' जब 
वाह ही वाह है और क्या चाहिए  


चंद्रभान भारद्वाज