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उस राह से गुजरना
जिस पर चला न कोई उस राह से गुजरना
आदर के साथ जीना साहस के साथ मरना
ऊँचाइयों पे चढ़ना आसान ज़िंदगी में
लेकिन बहुत कठिन है गहराई में उतरना
क्या आसमान देंगे तेरी उड़ान को वे
जिनका है काम उड़ते पंछी के पर कतरना
वे लोग क्या करेंगे तुरपन फटे हुए की
जिनकी रही है आदत दामन सदा कुतरना
मतलब नहीं विजय का हर दाँव जीत जाना
है अर्थ हर विजय का गिर गिर के फिर सँवरना
जो बाँध कर गले में पत्थर स्वयं ही डूबा
मुश्किल है उसका बच कर फिर से कहीं उबरना
जो 'भारद्वाज' लिक्खा है प्यार के रँगों से
निश्चित कहीं क्षितिज पर उस नाम का उभरना
चंद्रभान भारद्वाज
'
प्रेम की कहानी
इतनी सी बस रही है इक प्रेम की कहानी
मटके से पार करते उफनी नदी का पानी
आती है बन के बाधा हर प्रेम की डगर में
खोई हुई अँगूठी भूली हुई निशानी
इस प्रेम-यज्ञ में जो प्राणों को होम करती
होती है या दिवानी या होती है शिवानी
यह प्रेम सत्य भी है शिव भी है सुंदरम भी
इस भाव का नहीं है जीवन में कोई सानी
आता है प्यार का जब मौसम बहार बनकर
होती हैं अंकुरित खुद सूखी जड़ें पुरानी
इक डोर में बँधे पर रहते अलग अलग हैं
आपस का हाल पूछें बस और की जबानी
हैं 'भरद्वाज़' इसमें अक्षर तो बस अढ़ाई
पर प्रेम को न समझे विद्वान् और ज्ञानी
चंद्रभान भारद्वाज
तारों से पूछना
रातों की सब कहानियाँ तारों से पूछना
पीड़ाएँ इंतजार की द्वारों से पूछना
तप तप के प्रेम-अग्नि में क्यों राख हो गए
तपने का अर्थ प्रेम के मारों से पूछना
सहती रही है मार इक इक तंतु के लिए
धुनती रुई का दर्द पिंजियारों से पूछना
दाना नहीं मिला कभी पानी नहीं मिला
यायावरी का हाल बनजारों से पूछना
जब नींव की हर ईंट को खुद तोड़ते रहे
गिरने का क्यों सवाल दीवारों से पूछना
हर राग रागहीन है लयहीन रागिनी
सुरहीन क्यों अलाप फनकारों से पूछना
घर में डरे हुए डगर में भी डरे हुए
डर का सुराग आग तलवारों से पूछना
अब देश प्रांत गाँव घर सारे बँटे हुए
बंटने का राज भाषणों नारों से पूछना
हम 'भारद्वाज' कल थे जो हैं आज भी वही
बदली नज़र उन्होंने क्यों यारों से पूछना
चंद्रभान भारद्वाज