Sunday, May 22, 2011

जब कहीं दिलबर नहीं होता

इक ज़िन्दगी में जब कहीं दिलबर नहीं होता 
होते दरो-दीवार तो पर घर नहीं होता 

 जिसकी नसों में आग का दरिया न बहता हो 
काबिल भले हो वह मगर शायर नहीं होता 

 लहरें न  उठतीं हों नहीं तूफ़ान ही आते
सूखा हुआ तालाब इक  सागर नहीं होता

 जो नब्ज पहचाने न समझे धड़कनें दिल की 
होता है सौदागर वो चारागर नहीं होता 

  उमड़ीं घटायें जब कभी बिन प्यार के बरसीं 
तन भीग जाता है मगर मन  तर नहीं होता 

 यादों की खुशबू से अगर दालान भर जाते
गुलज़ार सपनों का महल खँडहर नहीं होता 

 यदि प्यार के बीजों में अंकुर फूटते पहले 
तो खेत 'भारद्वाज' का बंजर नहीं होता   

 चंद्रभान भारद्वाज 

Wednesday, May 18, 2011

दुनिया है थोथे रिश्तों की

भेंट लिफाफों गुलदस्तों की 
दुनिया है थोथे रिश्तों की 

तोलें सिर्फ तराजू लेकर 
यारी भी पुश्तों पुश्तों की 

सत्ता चलती है बस्ती में 
चोर उचक्कों अलमस्तों की 

भोग रहा कन्धों पर पीड़ा 
बचपन बोझीले बस्तों की 

लूटा ऐ टी ऍम शहर में 
खोली पोल पुलिस गश्तों की 

बरदी  बत्ती बेबस लगतीं 
बदहालत है चौरस्तों की 

'भारद्वाज'  हुआ है दुबला 
चिंता में मासिक किश्तों की 

चंद्रभान भरद्वाज