Saturday, December 10, 2016

            टिकने दिया कब

मिली धरती मगर टिकने दिया कब 
दिया आकाश तो उड़ने दिया कब 

रखीं बंधक कुँवारी कामनाएं 
पलक पर स्वप्न इक पलने दिया कब 

थके कंधे हुआहै बोझ जीवन 
समय के चक्र ने रुकने दिया कब 

लगी ठोकर गिरे थे रास्ते में 
हमें पर भीड़ ने उठने दिया कब 

पहाड़ों से उतरती सी नदी वो 
कहीं उस धार ने जमने दिया कब 

उगे थे प्यार के पौधे हृदय  में 
समय ने पर उन्हें फलने दिया कब 

थी 'भारद्वाज' मूरत नम्रता की 
अहम् ने पर उसे झुकने दिया कब 

चंद्रभान भारद्वाज 




Friday, December 9, 2016

                           ग़ज़ल 

लिखने वालों ने तो जब प्यार का किस्सा लिक्खा
आग का दरिया लिखा डूब के जाना लिक्खा

प्यार में पहले पहल पत्र लिखा  उसने
खुद को तो हीर लिखा मुझको भी राँझा लिक्खा

प्यार ने सारे नियम सारी हदों को तोड़ा
प्यास ऐसी थी कि सेहरा को भी दरिया लिक्खा

इस ज़माने ने लिखा प्यार को केवल धोखा
प्यार को हमने मगर नेक इरादा लिक्खा

ज्योति आँखों की लिखी और ह्रदय की धड़कन
प्यार में माँ ने मुझे चाँद का टुकड़ा लिक्खा  

राम वनवास भरत राज लिखा कर आए
इन हथेली की लकीरों में भी क्या क्या लिक्खा    

जब भी चढ़ता है 'भरद्वाज'नशा लिखने का
पल में इक शेर लिखा पल में ही दोहा लिक्खा

चंद्रभान भारद्वाज़