ज़िंदगी इक शास्त्र भी है ज़िंदगी विग्यान भी
ज़िंदगी इक शास्त्र भी है ज़िंदगी विग्यान भी
तन रही ब्रह्माण्ड के दोनो ध्रुवों तक ज़िंदगी
है रसातल तक पतन आकाश तक उत्थान भी
कर्म के फल से बँधी है ज़िंदगी की हर क्रिया
फल कभी अभिशाप है तो फल कभी वरदान भी
घूमती रहती सतत अपनी धुरी पर ज़िंदगी
इक तरफ होती उदय तो इक तरफ अवसान भी
नाम कोई एक कोई एक परिभाषा नहीं
ज़िंदगी इक देवता भी ज़िंदगी शैतान भी
जी रही है आज कितने रूप कितने रंग में
पी रही अमृत अगर तो कर रही विषपान भी
ज़िंदगी का सत्य उद्घाटित करें कैसे बता
जश्न लगती है कभी लगती कभी म्रियमाण भी
है कहीं तो इक इकाई है विभाजित भी कहीं
है घ्रणा के कटु वचन तो प्यार के मधु गान भी
जी रहे कुछ लोग रोकर कुछ मगर हँसकर जिये
लोग 'भारद्वाज' हैं नादान भी विद्वान भी
चंद्रभान भारद्वाज
1 comment:
सत्य असत्य सुख दुःख सब है यहाँ ! और इनके खट्टे मीठे तीखे स्वाद सी जिंदगी जिए जा रही है !
सुन्दर गीत !
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