Monday, May 26, 2014

ज़िंदगी इक शास्त्र भी है ज़िंदगी विग्यान भी 

राग है वैराग्य भी है भक्ति है तो ग्यान भी 
ज़िंदगी इक शास्त्र भी है ज़िंदगी विग्यान भी 

तन रही ब्रह्माण्ड के दोनो ध्रुवों तक ज़िंदगी 
है रसातल तक पतन आकाश तक उत्थान भी 

कर्म के फल से बँधी है ज़िंदगी की हर क्रिया 
फल कभी अभिशाप है तो फल कभी वरदान भी 

घूमती रहती सतत अपनी धुरी पर ज़िंदगी 
इक तरफ होती उदय तो इक तरफ अवसान भी  

नाम कोई एक कोई एक परिभाषा नहीं 
ज़िंदगी इक देवता भी ज़िंदगी शैतान भी 

जी रही है आज कितने रूप कितने रंग में 
पी रही अमृत अगर तो कर रही विषपान भी

ज़िंदगी का सत्‍य उद्घाटित करें कैसे बता 
जश्न लगती है कभी लगती कभी म्रियमाण भी 

है कहीं तो इक इकाई है विभाजित भी कहीं 
है घ्रणा के कटु वचन तो प्यार के मधु गान भी 

जी रहे कुछ लोग रोकर कुछ मगर हँसकर जिये
लोग 'भारद्वाज' हैं नादान भी विद्वान भी 

चंद्रभान भारद्वाज   


1 comment:

वाणी गीत said...

सत्य असत्य सुख दुःख सब है यहाँ ! और इनके खट्टे मीठे तीखे स्वाद सी जिंदगी जिए जा रही है !
सुन्दर गीत !