सहज प्यार की लौ जला कर तो देखो
सहज प्यार की लौ जला कर तो देखो
न कमतर लगेगा किसी साधना से
कभी प्रेम के प्रण निभा कर तो देखो
पिघलता है पत्थर स्वयं मोम जैसा
प्रणय की अगन से तपा कर तो देखो
बदन दो मगर एक होते हैं कैसे
किसी मन के भीतर समा कर तो देखो
नहीं रंग फीका पड़ेगा उमर भर
हिना प्यार की बस रचा कर तो देखो
धरा खुद ही चक्कर लगाने लगेगी
हथेली पे सूरज उगा कर तो देखो
लहर दौड़ती तन में मन में खुशी की
किसी के कभी काम आकर तो देखो
दिया जिसने जितना मिला उससे दुगुना
कहीं प्यार का धन लुटा कर तो देखो
न आनंद की हद 'भरद्वाज' कोई
कभी प्रेम पूजा बनाकर तो देखो
चंद्रभान भारद्वाज
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