राह में जिसकी जलते शमा की तरह
वो गुजरता है पागल हवा की तरह
छलछलाते हैं आँसू अगर आँख में
पीते रहते हैं कड़वी दवा की तरह
करना मुश्किल उसे धड़कनों से अलग
प्राण लिपटे तने से लता की तरह
प्यार का पुट न हो ज़िन्दगी में अगर
तो वो लगती है बंजर धरा की तरह
इक नियामत सी लगती थी जो ज़िन्दगी
कट रही एक लम्बी सजा की तरह
उड़ गए संग झोंकों के बरसे बिना
जो घुमड़ते रहे थे घटा की तरह
एक पत्थर की मूरत पसीजी नहीं
पूजते हम रहे देवता की तरह
हमने प्रस्ताव ठुकरा दिया इसलिए
प्यार भी मिल रहा था दया की तरह
सूझता ही न अब कुछ 'भरद्वाज' को
प्यार सिर पर चढ़ा है नशा की तरह
चंद्रभान भारद्वाज
Friday, March 26, 2010
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8 comments:
आपने शब्द अच्छे चुने........"
हमने प्रस्ताव ठुकरा दिया इसलिए
प्यार भी मिल रहा था दया की तरह
सूझता ही न अब कुछ 'भरद्वाज' को
प्यार सिर पर चढ़ा है नशा की तरह
सर आपकी शायरी में जो जिंदादिली देखने को मिलती है सचमुच नायाब है
राह में जिसकी जलते शमा की तरह
इस मिसरे में "जिसकी जलते" शब्द से कुछ अटकाव आ रहा है पढ़ने में क्या यहाँ "जिसके जलती" पढ़ा जा सकता है ?
कृपया जरूर बताएं
भाई वीनस केशरी जी,
आपने जो प्रश्न उठाया है उसके लिये
यह कहना है कि 'राह' स्त्री लिंग है अतः
इसके लिये 'जिसकी' शब्द ही प्रयोग होगा।
वैसे 'जिसकी' में 'की' में मात्रा गिराकर पढ़ेंगे
तो अटकाव नही आयेगा। एक बार पढ़ कर देखें।
फिर बतायें।गज़ल पढ़ने के लिये और उस पर अपने विचार रखने के लिये आपका आभारी हूँ। धन्यवाद।
चन्द्रभान भारद्वाज
भारद्वाज जी ,नमस्कार
प्यार का पुट न हो ज़िन्दगी में अगर
तो वो लगती है बंजर धरा की तरह
बहुत सुंदर और सच्ची बात कही है
उड़ गए संग झोंकों के बरसे बिना
जो घुमड़ते रहे थे घटा की तरह
इंसान के स्वार्थी स्वभाव का सटीक चित्रण
वाह-वाह।
इक नियामत सी लगती थी जो ज़िन्दगी
कट रही एक लम्बी सजा की तरह
वाह.....वाह......यादगार शेर
हमने प्रस्ताव ठुकरा दिया इसलिए
प्यार भी मिल रहा था दया की तरह
खुद्दारी की प्रभावशाली प्रस्तुति.
Ek Ek sher Nagiine sa jada hua hai is ghazal men..dil moh liya...lajawab ghazal...waah...
Neeraj
आपकी हर ग़ज़ल सुन्दर है ! उम्मीद है की आप से बहुत कुछ सीख पाऊँगा ।
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