उजड़ती बस्तियों को फिर बसाना है बहुत मुश्किल
बिलखती आँख में सपने सजाना है बहुत मुश्किल
बहुत आसान आलीशान भवनों का बना लेना
किसी दिल में जगह थोड़ी बनाना है बहुत मुश्किल
जहाँ कंक्रीट के घर हों लगे हों पेड़ प्लास्टिक के
परिंदे को वहाँ तिनके जुटाना है बहुत मुश्किल
भले ही फूल कागज़ के सजा लें आप गमलों में
तितलियों को मगर उन पर बिठाना है बहुत मुश्किल
क़तर कर पंख पिंजड़े में रखा हो जिस परिंदे को
उसे आजाद करके भी उड़ाना है बहुत मुश्किल
पिता हर एक बेटे को उठाता रोज कन्धों पर
पिता का बोझ बेटों को उठाना है बहुत मुश्किल
सदी ने कर दिया है आदमी इतना अपाहिज अब
बिना बैसाखियों के पग बढाना है बहुत मुश्किल
अगर बाहर लगी तो डाल कर पानी बुझा सकते
लगी हो आग दिल में तो बुझाना है बहुत मुश्किल
अगर सोया है 'भारद्वाज' तो वह जाग जाएगा
बहाना कर रहा हो तो जगाना है बहुत मुश्किल
चंद्रभान भारद्वाज
Friday, March 12, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
8 comments:
सुन्दर अभिव्यक्ति लगी ।
बहुत आसान आलीशान भवनों का बना लेना
किसी दिल में जगह थोड़ी बनाना है बहुत मुश्किल
जहाँ कंक्रीट के घर हों लगे हों पेड़ प्लास्टिक के
परिंदे को वहाँ तिनके जुटाना है बहुत मुश्किल
पिता हर एक बेटे को उठाता रोज कन्धों पर
पिता का बोझ बेटों को उठाना है बहुत मुश्किल
अगर सोया है 'भारद्वाज' तो वह जाग जाएगा
बहाना कर रहा हो तो जगाना है बहुत मुश्किल
आदरणीय भारद्वाज जी ऐसे सच्चे और अच्छे शेर कहाँ रोज रोज पढने को मिलते हैं...पूरी ग़ज़ल मुकम्मल है और सारे शेर दिल में घर कर लेने लायक...सुभान अल्लाह क्या लिखते हैं आप...वाह...इस बेहद खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल फरमाएं...
नीरज
भारद्वाज साहब......वैसे तो पूरी ग़ज़ल अच्छी है मगर ये शेर कुछ खास पसंद आया....
जहाँ कंक्रीट के घर हों लगे हों पेड़ प्लास्टिक के
परिंदे को वहाँ तिनके जुटाना है बहुत मुश्किल
वाह......क्या कहने ~!
खूबसूरती के साथ साथ जिस सदा दिली से आपने शे'र कहे हैं , पढ़ने के बाद एक बारी सोचने पर मजबूर कर रहे है ... बहुत सच्ची बात की है आपने हमेशा की तरह ... बधाई दिल से
अर्श
बहुत आसान आलीशान भवनों का बना लेना
किसी दिल में जगह थोड़ी बनाना है बहुत मुश्किल
पिता हर एक बेटे को उठाता रोज कन्धों पर
पिता का बोझ बेटों को उठाना है बहुत मुश्किल
आदरणीय भारद्वाज जी,
अदब के आसमां पर मुद्दतों तक जगमगायेंगे
ग़ज़ल के दोनों शेरों को भुलाना है बहुत मुश्किल
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
एक मुकम्मल और कामयाब गजल के लिए बधाई
मुझे भी बहुत पसंद आई
- वीनस
पिता हर एक बेटे को उठाता रोज कन्धों पर
पिता का बोझ बेटों को उठाना है बहुत मुश्किल
.............kya baat hai..!!!
आदरणीय,
मुद्दतों तक याद रखे जाने वाले अशाआ’र
मतला ख़ुद ही बेहद उम्दा है इसके अलावा
बहुत आसान आलीशान भवनों का बना लेना
किसी दिल में जगह थोड़ी बनाना है बहुत मुश्किल
पिता हर एक बेटे को उठाता रोज कन्धों पर
पिता का बोझ बेटों को उठाना है बहुत मुश्किल
वृद्धाश्रम में रहने वालों का दुख व्यक्त करता हुआ शेर
Post a Comment