Friday, September 26, 2014

                       मैं एक सागर हो गया

बन के पत्थर वो मिला तो मैं भी पत्थर हो गया
जब नदी बनकर मिला मैं एक सागर हो गया

है अजब संभावनाओं से भरी यह ज़िन्दगी
जो कभी सोचा नहीं था वो भी अक्सर हो गया

मेरे पैरों के तले की धरती उसने खोद दी
मेरा कद भी उसके कद के जब बराबर हो गया

पाँव में जब बेड़ियाँ थीं तब हमें धरती मिली
और जब बे-पर हुए हम अपना अम्बर हो गया

भाग्य माथे की लकीरों से नहीं बनता कभी
हाथ ने जैसा लिखा वैसा मुकद्दर हो गया

आँकती आई थी दुनिया अब तलक कमतर मुझे
वक़्त बदला तो मैं दुनिया से भी बढ़कर हो गया

एक अरसे से छिपा रक्खा था दिल के दर्द को
आँख की कोरें हुईं गीली उजागर हो गया

रोज ही करवट बदलता जा रहा है वक़्त अब
पिज्जा अपनी खीर पूड़ी से भी रुचिकर हो गया

नाम मेरा उसने जब अपनी कलाई पर लिखा
दिव्य 'भारद्वाज' का हर एक अक्षर हो गया

चंद्रभान भारद्वाज

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