Tuesday, October 7, 2014

                     जिंदगी प्यासी रही 

देह भी प्यासी रही है रूह भी प्यासी रही 
प्यार की दो बूँद बिन यह ज़िन्दगी प्यासी रही 

माँग में सिंदूर है पर आँख में काजल नहीं 
गोद खुशियों से भरी पर हर ख़ुशी प्यासी रही 

प्यास लेकर जी रहा था प्यास लेकर मर गया 
आदमी का दिन भी प्यासा रात भी प्यासी रही 

तन का वैभव धन से है पर मन का वैभव प्रेम है 
तन का सागर है भरा मन गागरी प्यासी रही 

हर तरफ छाई बहारों का बताओ क्या करें 
कामना के बाग की जब हर कली प्यासी रही 

प्यास दुनिया की बुझाती  आ रही युग से मगर 
गंदगी  ढोती हुई अब खुद  नदी प्यासी रही 

आज बस्ती में निगम का टेंकर आया नहीं 
हर घड़ा प्यासा रहा हर बालटी प्यासी रही 

त्रासदी ही त्रासदी थी बाढ़ की चारों तरफ 
शहर पानी से भरा पर हर गली प्यासी रही 

भाव के पीछे कभी शब्दों के पीछे भागती 
व्यग्र 'भारद्वाज' की यह लेखनी प्यासी रही 

चन्द्रभान भारद्वाज

 

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