जिंदगी प्यासी रही
देह भी प्यासी रही है रूह भी प्यासी रही
प्यार की दो बूँद बिन यह ज़िन्दगी प्यासी रही
माँग में सिंदूर है पर आँख में काजल नहीं
गोद खुशियों से भरी पर हर ख़ुशी प्यासी रही
प्यास लेकर जी रहा था प्यास लेकर मर गया
आदमी का दिन भी प्यासा रात भी प्यासी रही
तन का वैभव धन से है पर मन का वैभव प्रेम है
तन का सागर है भरा मन गागरी प्यासी रही
हर तरफ छाई बहारों का बताओ क्या करें
कामना के बाग की जब हर कली प्यासी रही
प्यास दुनिया की बुझाती आ रही युग से मगर
गंदगी ढोती हुई अब खुद नदी प्यासी रही
आज बस्ती में निगम का टेंकर आया नहीं
हर घड़ा प्यासा रहा हर बालटी प्यासी रही
त्रासदी ही त्रासदी थी बाढ़ की चारों तरफ
शहर पानी से भरा पर हर गली प्यासी रही
भाव के पीछे कभी शब्दों के पीछे भागती
व्यग्र 'भारद्वाज' की यह लेखनी प्यासी रही
चन्द्रभान भारद्वाज
देह भी प्यासी रही है रूह भी प्यासी रही
प्यार की दो बूँद बिन यह ज़िन्दगी प्यासी रही
माँग में सिंदूर है पर आँख में काजल नहीं
गोद खुशियों से भरी पर हर ख़ुशी प्यासी रही
प्यास लेकर जी रहा था प्यास लेकर मर गया
आदमी का दिन भी प्यासा रात भी प्यासी रही
तन का वैभव धन से है पर मन का वैभव प्रेम है
तन का सागर है भरा मन गागरी प्यासी रही
हर तरफ छाई बहारों का बताओ क्या करें
कामना के बाग की जब हर कली प्यासी रही
प्यास दुनिया की बुझाती आ रही युग से मगर
गंदगी ढोती हुई अब खुद नदी प्यासी रही
आज बस्ती में निगम का टेंकर आया नहीं
हर घड़ा प्यासा रहा हर बालटी प्यासी रही
त्रासदी ही त्रासदी थी बाढ़ की चारों तरफ
शहर पानी से भरा पर हर गली प्यासी रही
भाव के पीछे कभी शब्दों के पीछे भागती
व्यग्र 'भारद्वाज' की यह लेखनी प्यासी रही
चन्द्रभान भारद्वाज
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