Tuesday, September 23, 2014

             हर किरदार की अपनी जगह
यार की अपनी जगह है प्यार की अपनी जगह
ज़िन्दगी में तय है हर किरदार की अपनी जगह

ज़िन्दगी खिलते गुलाबों की कँटीली डाल है
फूल की अपनी जगह है खार की अपनी जगह

आप हैं और सामने है वक़्त की बहती नदी
पार की अपनी जगह है धार की अपनी जगह

कुछ सुलग कर बुझ गए हैं कुछ अभी सुलगे हुए
राख की अपनी जगह अंगार की अपनी जगह

अपनी लघुता आपकी  गुरुता के  आगे कम नहीं
है सुई अपनी जगह तलवार की अपनी जगह

सींचने पड़ते हैं पौधों की तरह रिश्ते यहाँ
मान की अपनी जगह मनुहार की अपनी जगह

बाँटने जब भी उजाला आई सूरज की किरण
हर गली में ही मिली अँधियार की अपनी जगह

चूड़ियाँ इक शौक भी है चूड़ियाँ इक रस्म भी
लोक रस्मों में बनी मनिहार की अपनी जगह

बल प्रदर्शन जाम धरनों के भरे माहौल में
भीड़ की अपनी है थानेदार की अपनी जगह

नेट हो स्मार्ट मोबाइल या टी वी सेट हो
चैनलों की भीड़ में अखबार की अपनी जगह

जो प्रतीक्षारत रहा है उम्र भर प्रिय के लिए
मन में 'भारद्वाज' है उस द्वार की अपनी जगह

चंद्रभान भारद्वाज

1 comment: