Saturday, August 16, 2014

                 तुझ से न शिकवा कोई

कोई रुतबा है न जलवा है न जज्बा कोई 
ज़िन्दगी फिर भी हमें तुझ से न शिक़वा कोई 

आस अपनी तो बनी बैठी है दुल्हन कब से 
पर न पंडित है न दूल्हा है न मड़वा कोई 

ज़िन्दगी यों तो सुहागिन है सदा से अपनी 
पर वो लगती है अभी जैसे हो विधवा कोई 

अपने बच्चों को सुला देता है कोई भूखा 
पर खिलाता है यहाँ कुत्तों को हलवा कोई 

स्वप्न देखा था कि आएँगे कभी अच्छे दिन
पर न रोटी है न कपड़ा  है न दड़वा कोई 

रास घोड़ों की थमा दी है समय ने उनको 
रथ चलाने का नहीं जिनको तजुरबा कोई 

आँख अख़बार की उन तक ही पहुंचतीं अब तो 
जिनकी पदवी है कि ओहदा है कि रुतबा कोई 

लगता कुर्सी के लिए ये हैं जरूरी शर्तें 
कोई हत्या हो दुराचार हो कि बलवा कोई 

तू 'भरद्वाज' कदम अपने सँभल कर रखना 
तेरी ग़ज़लों पे नहीं जारी हो फ़तवा कोई

चंद्रभान भारद्वाज

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