Friday, August 1, 2014

दर्द लिपटा है ख़यालों में ये कैसा मुझ से 

दर्द लिपटा है ख़यालों में ये कैसा मुझ से
छोड़ कर देख लिया प्यार न छूटा मुझ से 

फेस बुक पर जो नया दोस्त बना था मेरा 
कर गया मेरी शराफत में वो धोखा मुझ से 

वो है इक साँप सदा ज़हर उगलता मुझ पर 
चाहता है वो मगर दूध बताशा मुझ से 

जिसने इक रोज बुझाए थे दिये सब मेरे 
झिलमिलाता है उसी घर का हर कोना मुझ से 

पंख हैं पर  न उड़ानों की है हिम्मत बाकी 
साहिबो उठ गया क्या मेरा भरोसा मुझ से 

मुझ से वो खैर खबर पूछ गया दुनिया की 
मेरी तबीयत का मगर हाल न पूछा मुझ से 

जब से आँखों में उजालों ने कदम रक्खा है 
अपने चेहरे को छिपाता है अँधेरा मुझ से 

जान पहचान नहीं और न रिश्ता कोई 
नाम जुड़ता है मगर उसका हमेशा मुझ से 

जब भी साधा है निशाना मैंने सच की खातिर 
वक़्त ने माँग लिया मेरा अँगूठा मुझ से 

चंद्रभान भारद्वाज


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