इक दुआ राह से पर्वत को हटा देती है
इक दुआ राह से पर्वत को हटा देती है
आह की आग ज़माने को जला देती है
शब्द करते हैं असर जब भी किसी वाणी के
एक आवाज ही मुर्दों को जगा देती है
चाह जब बढ़ के पहुँचती है मिलन की हद तक
इक नदी खुद को ही सागर में मिला देती है
भूल अपनी पे सजा मिलती है औरों को अगर
वो हमें अपनी निगाहों में गिरा देती है
घर के हालात छिपाते तो छिपाते कैसे
हाल आँगन की ही दीवार बता देती है
प्यार तो सींचता रहता है जड़ें पौधों की
पर घृणा डालों पे विष बेल चढ़ा देती है
राख में ढूँढती रहती है सदा चिनगारी
हरिक चिनगारी को ये दुनिया हवा देती है
आपने किस से लिया और दिया है किस को
ज़िंदगी आपके खाते में लिखा देती है
कामयाबी को मदद करती है नाकामी भी
एक नाकामी कई राह दिखा देती है
नींद आती है मगर स्वप्न नहीं आते हैं
एक इंसान को जब मौत सुला देती है
तख़्त विश्वास का मजबूत बना हो चाहे
कील संदेह की पायों को हिला देती है
नेट पर चैट भी मैसेज भी करती रहती
पर न वो फोन न वो अपना पता देती है
जिस पे चढ़ती है नशा बन के 'भरद्वाज' ग़ज़ल
उसको 'ग़ालिब' या उसे 'मीर' बना देती है
चंद्रभान भारद्वाज
इक दुआ राह से पर्वत को हटा देती है
आह की आग ज़माने को जला देती है
शब्द करते हैं असर जब भी किसी वाणी के
एक आवाज ही मुर्दों को जगा देती है
चाह जब बढ़ के पहुँचती है मिलन की हद तक
इक नदी खुद को ही सागर में मिला देती है
भूल अपनी पे सजा मिलती है औरों को अगर
वो हमें अपनी निगाहों में गिरा देती है
घर के हालात छिपाते तो छिपाते कैसे
हाल आँगन की ही दीवार बता देती है
प्यार तो सींचता रहता है जड़ें पौधों की
पर घृणा डालों पे विष बेल चढ़ा देती है
राख में ढूँढती रहती है सदा चिनगारी
हरिक चिनगारी को ये दुनिया हवा देती है
आपने किस से लिया और दिया है किस को
ज़िंदगी आपके खाते में लिखा देती है
कामयाबी को मदद करती है नाकामी भी
एक नाकामी कई राह दिखा देती है
नींद आती है मगर स्वप्न नहीं आते हैं
एक इंसान को जब मौत सुला देती है
तख़्त विश्वास का मजबूत बना हो चाहे
कील संदेह की पायों को हिला देती है
नेट पर चैट भी मैसेज भी करती रहती
पर न वो फोन न वो अपना पता देती है
जिस पे चढ़ती है नशा बन के 'भरद्वाज' ग़ज़ल
उसको 'ग़ालिब' या उसे 'मीर' बना देती है
चंद्रभान भारद्वाज
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