कोई सागर भी तो हो
इक नदी
जिसमें समाए कोई
सागर भी तो
हो
प्यार की गहराई
जाने ऐसा दिलबर
भी तो हो
जल रही
है आग जैसे
मेरे दिल में
प्यार की
ऐसी जलती
आग निशदिन उसके
अंदर भी तो
हो
बाहरी सौंदर्य केवल
कोई सुंदरता नहीं
तन से
सुंदर है अगर
वो मन से
सुंदर भी तो
हो
खुद बनाकर
ओक पी लेगा
कोई मधु पेय
को
आँख में
उसकी छलकती प्रेम
गागर भी तो
हो
आरती का
थाल रक्खा है
सजा कर द्वार
पर
खटखटाए द्वार आकर
ऐसा मनहर भी तो
हो
देह के
हर रोम में
कब से बसीं
हैं गोपियाँ
जो नचाए
बाँसुरी पर कोई
नटवर भी तो
हो
बस परिश्रम
ही नहीं कुंजी
सफलता की यहाँ
संग में
उसके कहीं थोड़ा
मुक़द्दर भी तो
हो
व्यक्ति गिर कर
रास्ते में उठ
सकेगा या नहीं
हौसलों को जाँचने
की कोई ठोकर
भी तो हो
दे गये
हैं वो तो
आश्वासन कि बरसेंगे
यहाँ
पर बरसने
का कोई लक्षण
कहीं पर भी
तो हो
हाथ में
आई हुई सत्ता
निरंकुश कर न
दे
वक़्त का इक
सख़्त अंकुश उनके
सिर पर भी
तो हो
पूज कर
मैं तो बना
दूँगा उसे भगवान
पर
पथ में
'भारद्वाज' ऐसा कोई
पत्थर भी तो
हो
चंद्रभान भारद्वाज
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