Monday, June 13, 2016

            अमृत घड़ों की बात करते हैं 

लिए विष के मगर अमृत घड़ों की बात करते हैं 
भरे दुर्गंध से पर केवडों की बात करते हैं 

बनाने के लिए बहुमंज़िला प्रासाद खुद अपने 
गिराने के लिए बस झोपड़ों की बात करते हैं 

विवश होकर ग़रीबी से हुईं हैं आत्महत्याएँ 
वो पर थोथी प्रगति के आँकड़ों की बात करते हैं 

अचर्चित  बैंक से गुपचुप करोड़ों लूटने वाले 
किसानों के मगर डूबे ऋणों की बात करते हैं 

जिन्होने उम्र भर बस खिड़कियों के काँच फोड़े हैं 
उन्हीं कुछ पत्थरों की कंकड़ों की बात करते हैं 

जो कल तक दो समय की रोटियाँ गिनते रहे केवल 
अभी लाखों करोड़ों सैकड़ों की बात करते हैं 

जो आँधी के तनिक से वेग से होते धराशायी 
वो धरती में जमी अपनी जड़ों की बात करते हैं 

निकल कर मांद से बाहर कभी सागर नहीं देखा 
वो वर्षा से भरे उथले गड़ों की बात करते हैं 

कोई भी हौसला पर्वत के आगे झुक नहीं सकता 
स्वयं जब हाथ गेँती फावडों की बात करते हैं 

उभरते  डाकुओं  के  चित्र अक्सर आँख के आगे 
वो जब चम्बल  के  फैले बीहड़ों की बात करते हैं  

नहीं मालूम 'भारद्वाज'' जिनको सभ्यता खुद की 
हड़प्पा  और  मोहनजोदड़ों  की बात करते हैं 

चंद्रभान  भारद्वाज 

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