Tuesday, September 15, 2015

अपना तो ध्यान अपने पिया में लगा रहा
अपना तो ध्यान अपने पिया में लगा रहा
बस नेकी और राहे-वफ़ा में लगा रहा
भगवान उसको माफ़ करे दीन जानकर
जो हर कदम गुनाहो-दगा में लगा रहा
वह ज़िंदगी से मेरी गया तोड़ सिलसिला
पर मैं तो अपने वादे-वफ़ा में लगा रहा
जब नाव उसकी जा के फँसी बीच धार में
‘मैं उसके साथ साथ दुआ में लगा रहा’
मधुमेह रक्तचाप के झंझट से बच गया
मैं सुब्हो-शाम योग-क्रिया में लगा रहा
पद से तो कार्यमुक्त किया उम्र ने मुझे
पर मैं ग़ज़ल की रम्य विधा में लगा रहा
मुझ को न कोई ज्ञान है गीता क़ुरान का
मैं ज़िंदगी की रामकथा में लगा रहा
अँग्रेज़ी दवा ने किया कोई न जब असर
दादी की दी घरेलू दवा में लगा रहा
आँखों से ‘भरद्वाज’ मिली आँख तो मगर
मेरा वजूद शर्मो-हया में लगा रहा
चंद्रभान भारद्वाज

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