रसोई की महक उड़कर गली के पार तक पहुँची
रसोई की महक उड़कर गली के पार तक पहुँची
किसी के प्यार की खुशबू हमारे द्वार तक पहुँची
ज़माने की निगाहों से छिपा रक्खी थी अरसे से
न जाने राज़ की वो बात कब अख़बार तक पहुँची
सहा करती थीं घुट घुट कर लड़कियाँ छेड़खानी को
मगर अब बात सड़कों से निकल दरबार तक पहुँची
घृणा की एक चिनगारी दबी थी राख में अब तक
हवा की सह से लपटों के महा आकार तक पहुँची
चढ़े जब रेल में तो पाँव रखने को जगह माँगी
सफ़र में बात आगे सीट पर अधिकार तक पहुँची
वसूली की थी चौराहे पे जितनी भी सिपाही ने
नियत अनुपात में बँटकर वो थानेदार तक पहुँची
रुकी साँसें थमी जब धड़कनें भी दिल की सीने में
निकल कर बोतलों से तब दवा बीमार तक पहुँची
चुभाकर डंक शब्दों के उगलती है ज़हर मुँह से
सियासत आदमी से साँप के किरदार तक पहुँची
लगी थीं दीमकें जो अब तलक बस पेड़ की जड़ में
तने से चढ़ के 'भारद्वाज' अब हर डार तक पहुँची
चंद्रभान भारद्वाज
रसोई की महक उड़कर गली के पार तक पहुँची
किसी के प्यार की खुशबू हमारे द्वार तक पहुँची
ज़माने की निगाहों से छिपा रक्खी थी अरसे से
न जाने राज़ की वो बात कब अख़बार तक पहुँची
सहा करती थीं घुट घुट कर लड़कियाँ छेड़खानी को
मगर अब बात सड़कों से निकल दरबार तक पहुँची
घृणा की एक चिनगारी दबी थी राख में अब तक
हवा की सह से लपटों के महा आकार तक पहुँची
चढ़े जब रेल में तो पाँव रखने को जगह माँगी
सफ़र में बात आगे सीट पर अधिकार तक पहुँची
वसूली की थी चौराहे पे जितनी भी सिपाही ने
नियत अनुपात में बँटकर वो थानेदार तक पहुँची
रुकी साँसें थमी जब धड़कनें भी दिल की सीने में
निकल कर बोतलों से तब दवा बीमार तक पहुँची
चुभाकर डंक शब्दों के उगलती है ज़हर मुँह से
सियासत आदमी से साँप के किरदार तक पहुँची
लगी थीं दीमकें जो अब तलक बस पेड़ की जड़ में
तने से चढ़ के 'भारद्वाज' अब हर डार तक पहुँची
चंद्रभान भारद्वाज
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