माहौल बेरुख़ी का बद इस कदर न देखा
माहौल बेरुख़ी का बद इस कदर न देखा
वह सामने खड़ा था लेकिन इधर न देखा
पिघला हृदय न उसका गीली हुईं न आँखें
इस आह में तो हमने कुछ भी असर न देखा
उसने दिया तो हमने वो प्याला पी लिया था
अमृत भरा था उसमें या था ज़हर न देखा
जब आग में गली के सब घर ही जल रहे थे
उसका तो घर बचाया पर अपना घर न देखा
इक आदमी की हत्या होती रही सड़क पे
पर भीड़ में किसी ने मुड़कर उधर न देखा
आँगन के बीच जिसके दीवार हो न कोई
कोई भी आज ऐसा पुश्तैनी घर न देखा
कदमों के हौसलों ने जिसको छुआ नही हो
पृथ्वी पे इतना ऊँचा कोई शिखर न देखा
जिसकी जड़ों में गहरे तक दीमकें लगी हों
पकता हुआ कोई फल उस पेड़ पर न देखा
इंसान ऐसा कोई दुनिया में मिल न पाया
खुद 'भारद्वाज' जिसने गम उम्र भर न देखा
चंद्रभान भारद्वाज
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