परीक्षा दी यहाँ किसी ने जब भी अपने प्यार की
परीक्षा दी यहाँ किसी ने जब भी अपने प्यार की
पड़ी है मार झेलनी कटार या अँगार की
खुली है आँख जब किया है सूर्य का मुक़ाबला
ये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की
उतर गया है आव तो निगाह से उतर गया
जहाँ में पूछ-ताछ सिर्फ़ होती आवदार की
झरे थे फूल कल तलक तो उनके शब्द शब्द से
उन्हीं के होंठ आज बात कर रहे हैं खार की
ये दोष वक़्त का रहा कि दोष है हकीम का
मरीज़ सन्निपात का दवाई दी बुखार की
बँधी रहीं थी जब तलक तो खुद ही शक्ति बन गईं
खुलीं तो खाक की हुईं वो मुट्ठियाँ हज़ार की
चमन को जो उजाड़ने के खुद जवाबदार थे
बता रहें हैं आजकल वो हर कमी बहार की
समझ सकेंगे वो कहाँ है ज़िंदगी का अर्थ क्या
जिए हैं उम्र भर स्वयं जो ज़िंदगी उधार की
बताएँ 'भारद्वाज' क्या है हाल अब वियोग में
सदी सी लग रही है इक घड़ी भी इंतज़ार की
चंद्रभान भारद्वाज
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