Saturday, May 2, 2015

                  पूजा घर बना दिया 

वीरान दिल को एक पूजा घर बना दिया 
इक बूँद को भी प्यार का सागर बना दिया 

ठोकर लगी थी राह में जिससे कभी हमें 
हमने उसी को मील का पत्थर बना दिया 

रातों को गहरी नींद की चिंता नहीं रही 
हाथों का तकिया देह का बिस्तर बना दिया 

जिसकी वजह से कल दिलों में फासले हुए 
आँगन की उस दीवार में इक दर बना दिया 

आकाश की ऊँचाइयों को छू सकें कभी 
सोये हुए हर हौसले को पर बना दिया 

थक हार कर जो रुक गए थे राह में कहीं 
इक प्रेरणा से जीत का अवसर बना दिया 

गुम हो गया था जो समय के गर्त में कहीं 
उस नाम का सोने का हर अक्षर बना दिया 

घर का पता कोई न कोई गाँव  का पता 
इस ज़िन्दगी ने हमको यायावर बना दिया 

तक़दीर के भी खेल 'भारद्वाज' हैं अजब 
नौकर को मालिक मालिक को नौकर बना दिया 

चंद्रभान भारद्वाज 

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