ग़ज़ल
चेहरे पे कांति प्यार की छाई हुई तो है
हर याद उसकी मन में सवाई हुई तो है
हमको समय ने बाँध के रक्खा अलग अलग
पर हमने प्रीति -रीति निभाई हुई तो है
मजबूरियों ने पास तो आने नहीं दिया
पर अपनी हर ग़ज़ल में वो आई हुई तो है
ये बात अलग है कि वो भर ही नहीं सका
ये जख्मे दिल है इसकी दवाई हुई तो है
चहरे पे मुस्कराहट हरदम बनी रही
अपनी कभी कभी यों लड़ाई हुई तो है
आते ही उसके वज़्म में धुन भूल ही गए
यों उसके पहले धुन ये बजाई हुई तो है
लगते भले हों देह से वो पास पास हैं
उनके दिलों के बीच इक खाई हुई तो है
क्या क्या प्रमाण देगा वो अपनी सफाई में
हर ओर उसने आग लगाई हुई तो है
वो नाम ले के अपना सुनाने चले ग़ज़ल
जो 'भारद्वाज ' जी ने सुनाई हुई तो है
चंद्रभान भारद्वाज
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