Friday, March 13, 2015

प्यार में यार की हर बात भली लगती है 

राह काँटों से भरी कुंजगली लगती है 
प्यार में यार की हर बात भली लगती है 

विष में डूबी हुई हीरे की कनी भी कोई 
होठ को छूते ही मिसरी की डली लगती है

छत से जो लटकी हुई डाल गले में फंदा
प्यार के खेल में शायद वो छली लगती है 

गाँव के ताल में था तैर रहा शव जिसका 
लाज की मारी हुई रामकली लगती है 

पुत्र की आस में जब जन्म दिया बेटी को
सास को अपनी बहू कर्मजली लगती है 

जब से बीमार के सिरहाने वो आकर बैठा 
द्वार तक आई हुई मौत टली लगती है 

थाम  कर हाथ अगर साथ 'भरद्वाज' रहे 
काजू बादाम सी हर मूँगफली लगती है 

चंद्रभान भारद्वाज 


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