एक बंधन से उबर जाना है
एक बंधन से उबर जाना है
द्वार दीवार में कर जाना है
द्वार दीवार में कर जाना है
फूल से निकली हुई ख़ुश्बू सा
अब हवाओं में बिखर जाना है
अब हवाओं में बिखर जाना है
नाम को याद रखेंगी सदियाँ
आज हर दिल में उतर जाना है
आज हर दिल में उतर जाना है
राह ख़ुद बनती चली जायेगी
बढ़ते क़दमों को जिधर जाना है
बढ़ते क़दमों को जिधर जाना है
जान अब अपनी हथेली पे रखी
‘आज हर हद से गुजर जाना है’
‘आज हर हद से गुजर जाना है’
मृत्यु पर गर्व करेगा जीवन
प्यार में डूब के तर जाना है
प्यार में डूब के तर जाना है
डाल के सूखे हुए पत्ते को
क्या पता गिर के किधर जाना है
क्या पता गिर के किधर जाना है
बाद में ताजमहल बनते हैं
पहले मिट्टी में उतर जाना है
पहले मिट्टी में उतर जाना है
आँसुओं को भी बनाता मोती
जिसने ग़ज़लों का हुनर जाना है
जिसने ग़ज़लों का हुनर जाना है
रैलियाँ उनकी निकल जाने पर
सिर्फ सन्नाटा पसर जाना है
सिर्फ सन्नाटा पसर जाना है
चढ़ गया गहरा नशा नज़रों का
धीरे धीरे ही असर जाना है
धीरे धीरे ही असर जाना है
साज सामान सँभालो अपना
अब ‘भरद्वाज’ को घर जाना है
अब ‘भरद्वाज’ को घर जाना है
चंद्रभान भारद्वाज
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