Friday, January 30, 2015

             अहसान को भी भूल जाते हैं 

अहम में आदमी अहसान को भी भूल जाते हैं 
मिले जब लक्ष्मी भगवान को भी भूल जाते हैं 

घिरे रहते हैं जो चेहरे सदा गहरे तनावों से 
हँसी तो छोड़िये मुस्कान को भी भूल जाते हैं 

कराना पड़ता है अपने हुनर का रोज विज्ञापन 
नहीं तो आपके अवदान को भी भूल जाते हैं 

दिया भी कौन रखता है शहीदों की मजारों पर 
यहाँ अब लोग देवस्थान को भी भूल जाते हैं 

उजाड़ी जिसने कल बस्ती किये थे घर से बेघर सब 
समय निकला तो उस तूफ़ान को भी भूल जाते हैं 

समझ पाएंगे कैसे अर्थ मन की भावनाओं का 
जो अपनी देहरी दालान को भी भूल जाते हैं 

अँधेरा शक का गहराता है जब विश्वास के घर में 
तो मन के खिड़की रोशनदान को भी भूल जाते हैं 

नशा अभिमान का जिनके सिरों पर बोलता चढ़कर 
वो अपने मान को सम्मान को भी भूल जाते हैं 

उत्तर आती है मन की वादियों में जब परी कोई 
तो 'भारद्वाज' ऋषि फिर ध्यान को भी भूल जाते हैं 

चंद्रभान  भारद्वाज 


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