अहसान को भी भूल जाते हैं
अहम में आदमी अहसान को भी भूल जाते हैं
मिले जब लक्ष्मी भगवान को भी भूल जाते हैं
घिरे रहते हैं जो चेहरे सदा गहरे तनावों से
हँसी तो छोड़िये मुस्कान को भी भूल जाते हैं
कराना पड़ता है अपने हुनर का रोज विज्ञापन
नहीं तो आपके अवदान को भी भूल जाते हैं
दिया भी कौन रखता है शहीदों की मजारों पर
यहाँ अब लोग देवस्थान को भी भूल जाते हैं
उजाड़ी जिसने कल बस्ती किये थे घर से बेघर सब
समय निकला तो उस तूफ़ान को भी भूल जाते हैं
समझ पाएंगे कैसे अर्थ मन की भावनाओं का
जो अपनी देहरी दालान को भी भूल जाते हैं
अँधेरा शक का गहराता है जब विश्वास के घर में
तो मन के खिड़की रोशनदान को भी भूल जाते हैं
नशा अभिमान का जिनके सिरों पर बोलता चढ़कर
वो अपने मान को सम्मान को भी भूल जाते हैं
उत्तर आती है मन की वादियों में जब परी कोई
तो 'भारद्वाज' ऋषि फिर ध्यान को भी भूल जाते हैं
चंद्रभान भारद्वाज
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