उजाले क्या अँधेरे क्या
अवध की मस्त शामें क्या वनारस के सवेरे क्या
अगर हों बंद आँखें तो उजाले क्या अँधेरे क्या
दहक कर आग नफ़रत की जला जाती है बस्ती को
उसे हिन्दू के डेरे क्या उसे मुस्लिम के डेरे क्या
उगा है सूर्य बनकर जो चमकता ही है धरती पर
उसे फिर तम के घेरे क्या घने कुहरे के घेरे क्या
रखा विश्वास की गठरी में जब संतोष के धन को
तो फिर जीवन सफर में चोर डाकू या लुटेरे क्या
किसी रिश्ते में अपने को कभी बाँधा नहीं जिसने
समझता कैसे होते प्यार की गलियों के फेरे क्या
गड़रिया ज़िन्दगी की भेड़ लेकर घर से निकला है
तो बस्ती के बसेरे क्या तो जंगल के बसेरे क्या
टिकी है नींव 'भारद्वाज' जब कच्चे धरातल पर
महल सपनों के ढहने हैं वो तेरे क्या वो मेरे क्या
चंद्रभान भारद्वाज
अवध की मस्त शामें क्या वनारस के सवेरे क्या
अगर हों बंद आँखें तो उजाले क्या अँधेरे क्या
दहक कर आग नफ़रत की जला जाती है बस्ती को
उसे हिन्दू के डेरे क्या उसे मुस्लिम के डेरे क्या
उगा है सूर्य बनकर जो चमकता ही है धरती पर
उसे फिर तम के घेरे क्या घने कुहरे के घेरे क्या
रखा विश्वास की गठरी में जब संतोष के धन को
तो फिर जीवन सफर में चोर डाकू या लुटेरे क्या
किसी रिश्ते में अपने को कभी बाँधा नहीं जिसने
समझता कैसे होते प्यार की गलियों के फेरे क्या
गड़रिया ज़िन्दगी की भेड़ लेकर घर से निकला है
तो बस्ती के बसेरे क्या तो जंगल के बसेरे क्या
टिकी है नींव 'भारद्वाज' जब कच्चे धरातल पर
महल सपनों के ढहने हैं वो तेरे क्या वो मेरे क्या
चंद्रभान भारद्वाज
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