लिये बैठे हैं
आप किस दौर के हालात लिये बैठे हैं
दिल में बस बीती हुई बात लिये बैठे हैं
अब यहाँ कोख भी मिलती है किराया देकर
लोग बाज़ार में ज़ज़्बात लिये बैठे हैं
एक मिट्टी की ही गुल्लक में है पूँजी अपनी
वे तो स्विस बैंक की औकात लिये बैठे हैं
अब तो रिश्ते भी बदलते हैं यहाँ पल पल में
आप बचपन की मुलाकात लिये बैठे हैं
सभ्यता आज की मंगल की सतह तक पहुँची
हम हथेली पे कढ़ी भात लिये बैठे हैं
आजकल प्यार शुरू होता है मोबाइल पर
वे निगाहों से शुरूआत लिये बैठे हैं
शब्द होठों पे लिये बैठे हैं मीठे मीठे
मन में वे अपने मगर घात लिये बैठे हैं
अब तो सावन में न भादों में बरसते बादल
पर वे आषाढ़ की बरसात लिये बैठे हैं
अपनी आदत न 'भरद्वाज' बदल पाये हम
पहली यादों को ही दिन रात लिये बैठे हैं
चंद्रभान भारद्वाज
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