Thursday, November 20, 2014

             लिये बैठे हैं 

आप किस दौर के हालात लिये बैठे हैं 
दिल में बस बीती हुई बात लिये बैठे हैं 

अब यहाँ कोख भी मिलती है किराया देकर 
लोग बाज़ार में ज़ज़्बात लिये बैठे हैं 

एक मिट्टी की ही गुल्लक में है पूँजी अपनी 
वे तो स्विस बैंक की औकात लिये बैठे हैं 

अब तो रिश्ते भी बदलते हैं यहाँ पल पल में 
आप बचपन की मुलाकात लिये बैठे हैं 

सभ्यता आज की मंगल की सतह तक पहुँची
हम हथेली पे कढ़ी भात लिये बैठे हैं 

आजकल प्यार शुरू होता है मोबाइल पर 
वे निगाहों से शुरूआत लिये बैठे हैं 

शब्द होठों पे लिये बैठे हैं मीठे मीठे 
मन में वे अपने मगर घात लिये बैठे हैं 

अब तो सावन में न भादों में बरसते बादल 
पर वे आषाढ़ की बरसात लिये बैठे हैं 

अपनी आदत न 'भरद्वाज' बदल पाये हम 
पहली यादों को ही दिन रात लिये बैठे हैं 

चंद्रभान भारद्वाज

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