संभाले हुए हैं
घर की गिरती हुई दीवार संभाले हुए हैं
एक बिखरा हुआ परिवार संभाले हुए हैं
सुबह रोजी का न शामों को पता रोटी का
ऐसे हालात में घरवार संभाले हुए हैं
फैसले की है न उम्मीद हमारे हक़ में
कुर्सियाँ सारी गुनहगार संभाले हुए हैं
बोझ जंजीर का पाँवों पे सँभाला हमने
आप जंजीर की झंकार संभाले हुए हैं
उसकी नीदों में कहीं बिघ्न न आए कोई
हम बुरे वक़्त का हर वार संभाले हुए हैं
जो कभी जंग के मैदान में उतरे ही नहीं
आज बिन मूठ की तलवार संभाले हुए हैं
जिनसे खुद तो न सँभल पाया कभी घर अपना
अब वही देश की सरकार संभाले हुए हैं
अब सजा से भी उन्हें फर्क नहीं पड़ता है
जेल में रह के भी दरबार संभाले हुए हैं
जिसकी कथनी में असर है न असर करनी में
लोग उस नाम को बेकार संभाले हुए हैं
गाड़ियाँ उनकी चलाते तो हैं रोबोट यहाँ
वो रमोटों से ही रफ़्तार संभाले हुए हैं
उनको मैदान में आने की जरूरत ही नहीं
मोर्चा उनके तरफदार संभाले हुए हैं
उगते सूरज को छिपाया है जिन्होंने अबतक
खुद उजालों का वो बाज़ार संभाले हुए हैं
ज़िन्दगी अपनी 'भरद्वाज' न सँभली हमसे
उसकी यादों के वरक़ यार संभाले हुए हैं
चंद्रभान भारद्वाज
घर की गिरती हुई दीवार संभाले हुए हैं
एक बिखरा हुआ परिवार संभाले हुए हैं
सुबह रोजी का न शामों को पता रोटी का
ऐसे हालात में घरवार संभाले हुए हैं
फैसले की है न उम्मीद हमारे हक़ में
कुर्सियाँ सारी गुनहगार संभाले हुए हैं
बोझ जंजीर का पाँवों पे सँभाला हमने
आप जंजीर की झंकार संभाले हुए हैं
उसकी नीदों में कहीं बिघ्न न आए कोई
हम बुरे वक़्त का हर वार संभाले हुए हैं
जो कभी जंग के मैदान में उतरे ही नहीं
आज बिन मूठ की तलवार संभाले हुए हैं
जिनसे खुद तो न सँभल पाया कभी घर अपना
अब वही देश की सरकार संभाले हुए हैं
अब सजा से भी उन्हें फर्क नहीं पड़ता है
जेल में रह के भी दरबार संभाले हुए हैं
जिसकी कथनी में असर है न असर करनी में
लोग उस नाम को बेकार संभाले हुए हैं
गाड़ियाँ उनकी चलाते तो हैं रोबोट यहाँ
वो रमोटों से ही रफ़्तार संभाले हुए हैं
उनको मैदान में आने की जरूरत ही नहीं
मोर्चा उनके तरफदार संभाले हुए हैं
उगते सूरज को छिपाया है जिन्होंने अबतक
खुद उजालों का वो बाज़ार संभाले हुए हैं
ज़िन्दगी अपनी 'भरद्वाज' न सँभली हमसे
उसकी यादों के वरक़ यार संभाले हुए हैं
चंद्रभान भारद्वाज
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