दूर रहकर ही मिला या पास में आकर मिला
मीत मन से मन मिला तू और स्वर से स्वर मिला
आदमी की अस्मिता का प्रश्न है अब सामने
हैं सभी हैरान पर अब तक कहाँ उत्तर मिला
दौड़ता था धमनियों में खून जिसके नाम से
अब उसी की धमनियों में सन्निपाती ज्वर मिला
जो बताता था दिशा को और दूरी को कभी
राह में उखड़ा हुआ वह मील का पत्थर मिला
सूचना तो यह मिली थी गाँव में बारिश हुई
खेत इक सूखा मिला पर और इक बंजर मिला
एक अरसे बाद लौटे जब शहर से गाँव में
घर मिला फूटा हुआ टूटा हुआ छप्पर मिला
हो गया लगता है उसके साथ कोई हादसा
झाड़ियों में मधुमती के पाँव का जेवर मिला
आ गई सैयाद के चक्कर में शायद फाख्ता
खून के धब्बे मिले हैं और टूटा पर मिला
देखता है थालियों में रोज भूखा आदमी
विष मिला है सब्जियों में दाल में कंकर मिला
खोजते फिरते थे मंदिर और मस्जिद में जिसे
बंद कर आँखें निहारा तो वही अन्दर मिला
हाथ 'भारद्वाज' सारे अपने अपने धो रहे
बहती गंगा में जिसे जैसा जहाँ अवसर मिला
चंद्रभान भारद्वाज
7 comments:
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 29-03 -2012 को यहाँ भी है
.... नयी पुरानी हलचल में ........सब नया नया है
देखता है थालियों में रोज भूखा आदमी
विष मिला है सब्जियों में दाल में कंकर मिला
बहुत संवेदनशील लिखा है ...खूबसूरत गजल
एक अरसे बाद लौटे जब शहर से गाँव में
घर मिला फूटा हुआ टूटा हुआ छप्पर मिला
बहुत गहन ...संवेदनशील लेखन ...
बधाई एवं शुभकामनायें ...!!
आ गई सैयाद के चक्कर में शायद फाख्ता
खून के धब्बे मिले हैं और टूटा पर मिला
ek se badhkar ek ashaar..bahut sashaqt ghazal likhi hai aapne.
खूबसूरत गजल,अच्छी प्रस्तुति
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
umda gazal!
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