गुनगुना कर देखिये या मुस्करा कर देखिये
ज़िन्दगी के बोझ को हलका बना कर देखिये
आपकी भाषा समझते हैं बहुत अच्छी तरह
फूल-पत्तों को व्यथा अपनी सुना कर देखिये
इक-न-इक दिन पूर्ण होगी आपकी मन- कामना
अपने सच्चे मन से कोई प्रार्थना कर देखिये
धूप में वह छाँह देगा ज़िन्दगी भर आपको
घर के आँगन में कोई पौधा लगा कर देखिये
पंख लग जायेंगे सहसा आपके हर स्वप्न को
रेशमी आँचल का थोड़ा प्यार पाकर देखिये
ओढ़ना बरसातियों का छतरियों का छोड़ कर
पहली बारिश में कभी नंगा नहा कर देखिये
देखना आसान हो जायेगा आगे का सफ़र
यार 'भारद्वाज' को अपना बना कर देखिये
चंद्रभान भारद्वाज
9 comments:
बहुत खूब !!
बहुत खूबसूरत और प्रेरणा देती गजल ...
कल 22/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत ही सुंदर भावों के संयोजन से सुसजित बहुत ही खूबसूरत एवं प्रेरणात्मक प्रस्तुति....
ओढ़ना बरसातियों का छतरियों का छोड़ कर
पहली बारिश में कभी नंगा नहा कर देखिये
it looks nice to be in childhood.
आपकी भाषा समझते हैं बहुत अच्छी तरह
फूल-पत्तों को व्यथा अपनी सुना कर देखिये ...
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल...
सादर बधाई.
बधाई...बढ़िया रचना हेतु,
इक-न-इक दिन पूर्ण होगी आपकी मन- कामना
अपने सच्चे मन से कोई प्रार्थना कर देखिये
सकारात्मक सोच...
आपकी भाषा समझते हैं बहुत अच्छी तरह
फूल-पत्तों को व्यथा अपनी सुना कर देखिये
बहुत खूब !
गुनगुना कर देखिये या मुस्करा कर देखिये
ज़िन्दगी के बोझ को हलका बना कर देखिये
आपकी भाषा समझते हैं बहुत अच्छी तरह
फूल-पत्तों को व्यथा अपनी सुना कर देखिये
वाह, आपने मेरी गज़ल याद दिला दी
ज़िंदगी का बोझ हल्का इस तरह होता अरुण
गैर की खुशियों की खातिर, गम उठा के देखिये...
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